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Written By BBC Hindi
Last Modified: सोमवार, 5 दिसंबर 2022 (11:13 IST)

लालू यादव की सिंगापुर में सर्जरी : किडनी ट्रांसप्लांट कैसे होती है, क्या हैं नियम और शर्तें?

लालू यादव की सिंगापुर में सर्जरी : किडनी ट्रांसप्लांट कैसे होती है, क्या हैं नियम और शर्तें? - Lalu Prasad Yadav undergoes kidney transplant surgery in Singapore
- सुशीला सिंह
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू यादव की किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सोमवार को सर्जरी हो रही है। उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने अस्पताल से तस्वीर साझा की और लोगों से दुआ देने को कहा है। लालू यादव का ऑपरेशन सिंगापुर के माउंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में हो रहा है। लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ही पिता को किडनी डोनेट कर रही हैं।

रोहिणी आचार्य ने अपने पिता को किडनी दान करने पर कहा है- ये तो बस मांस का टुकड़ा है, जो मैं अपने पापा को देना चाहती हूं। वहीं, लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने बताया कि 'डॉक्टरों का कहना है कि परिवार में ही कोई सदस्य किडनी दे तो ज़्यादा बेहतर होता है। परिवार में और भी लोग उन्हें किडनी देना चाहते थे, लेकिन मेरी बहन रोहिणी ने जांच कराई तो सबसे अच्छा मैच उन्हीं से हुआ।

रोहिणी आचार्य आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की दूसरे नंबर की बेटी हैं। रोहिणी सिंगापुर में रहती हैं, जहाँ लालू प्रसाद के किडनी ट्रांसप्लांट की सर्जरी हो रही है। मेडिकल जांच के दौरान किस आधार पर किसी को किडनी बदलवाने की सलाह दी जाती है। बीबीसी ने कई डॉक्टरों से बात करके किडनी बदलवाने से जुड़े सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है।

कैसे होती है जांच?
एक व्यक्ति की किडनी ठीक तरह से काम कर रही है या नहीं, उसके लिए ग्लोमेरुलर फ़िल्टरेशन रेट या जीएफ़आर टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में मरीज़ के ख़ून के ज़रिए किडनी के कामकाज को देखा जाता है।

दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल में यूरोलॉजी एंड रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी विभाग में निदेशक डॉक्टर वाहिद ज़मां के अनुसार, किडनी शरीर में ख़ून को फ़िल्टर करने का काम करती है। शरीर में किडनी दरअसल मूल रूप से पेशाब, अन्य तरल पदार्थों और शरीर में उत्पन्न होने वाले वेस्ट के लिए ख़ून को फ़िल्टर करती है।

वे बताते हैं कि एक स्वस्थ व्यक्ति में किडनी के काम करने की क्षमता 90 मिलीलीटर/मिनट से ऊपर होनी चाहिए। हालांकि उम्र के साथ ये कम होती रहती है, लेकिन अगर ये 15 मिलीलीटर/मिनट से नीचे जाए, तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है। लेकिन डॉक्टर मानते हैं कि ऐसे मामलों में ट्रांसप्लांट सही रहता है।

कैसे कराएं, किडनी की जांच
सर गंगा राम अस्पताल में नेफ्रोलॉजी विभाग में उपाध्यक्ष डॉ. मनीष मलिक का कहना है कि जो लोग डायबीटिज़ और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ होते हैं, उन्हें किडनी की जांच समय-समय पर कराते रहनी चाहिए ताकि अगर किडनी पर असर ज़्यादा हो रहा है, तो उसका समय रहते इलाज कराया जा सके।

डॉक्टर मनीष मलिक बताते हैं कि उनके अस्पताल में एक साल में क़रीब 250 किडनी ट्रांसप्लांट होती हैं और पथरी या सिस्ट भी किडनी ट्रांसप्लांट के कारण बनते हैं। वे बताते हैं कि शरीर में जब जीएफ़आर कम होने लगता है, तो उसके लक्षण ये होते हैं-
पेशाब ज़्यादा आना, रात में आना
शरीर में सूजन
कमज़ोरी
जीएफ़आर की ज़्यादा कमी होने पर शरीर में ये लक्षण दिखते हैं।
ख़ून की कमी
चमड़ी पर दाग-धब्बे आना
भूख न लगना
उल्टियां आना
शरीर में सूजन होना

कौन कर सकता है किडनी का दान?
किडनी ट्रांसप्लांट के लिए भारत में दान देने और लेने के लिए दो विकल्प दिए गए हैं। पहला जीवित संबंधित डोनर और दूसरा केडेवर यानी वो डोनर जिसकी मृत्यु हो चुकी हो या ब्रेन डेड हो। जिस व्यक्ति की किडनी का ट्रांसप्लांट होना है, वो व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों की किडनी ले सकता है। इसमें दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन और बच्चे शामिल हैं।

डॉक्टर सौरभ शर्मा बताते हैं कि अगर परिवार का सदस्य किडनी देने में अक्षम हो या उपलब्ध न हो, तो ऐसे में कोई दोस्त या जानने वाला इच्छा से किडनी दान कर सकता है। लेकिन इसके लिए सारी आधिकारिक प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद ही इजाज़त दी जाती है। शर्मा पिछले नौ साल से ऑर्गन इंडिया में काम कर रहे हैं।

ये संस्था अंगदान को लेकर जागरूकता फैलाने का काम करती है ताकि उन लोगों की मदद हो सके जिन्हें अंगदान की ज़रूरत है। क़ानून के मुताबिक़, किडनी ट्रांसप्लांट कमर्शियल या व्यावसायिक कारणों के लिए नहीं होना चाहिए।

केडेवर ऑर्गन डोनर से आशय उस व्यक्ति से है जिसकी किसी दुर्घटना में मौत हो जाए। इसके साथ ही ब्रेन डेड ठहराए गए शख़्स के परिवार से अनुमति और आधिकारिक प्रक्रिया पूरी करने के बाद किडनी ली जा सकती है। दान देने वाला व्यक्ति 18 साल से ऊपर और स्वस्थ होना चाहिए। इसके साथ ही इस बात की तस्दीक की जाना ज़रूरी है कि व्यक्ति किसी दबाव में किडनी न दे रहा हो।

किडनी बदलने की प्रक्रिया क्या होती है?
एक व्यक्ति के शरीर में दो किडनियां होती हैं। डॉक्टर मनीष मलिक के अनुसार, डोनर के शरीर से किडनी निकालकर मरीज़ की दाईं जांघ के ऊपर वाले हिस्से में ट्रांसप्लांट कर दी जाती है। ऐसे में दो किडनी शरीर में तो रहती है और तीसरी लग जाती है।

वे आगे बताते हैं, वैसे एक व्यक्ति का काम एक किडनी से भी चल सकता है और वो सामान्य जीवन जी सकता है।कहा जाता है कि एक हज़ार में दो लोगों की एक ही किडनी होती है। वैसे ही डोनर किडनी देने के बाद ठीक से जीवित रह सकता है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद मरीज़ को इम्यून-सप्रेसेंट दिए जाते हैं ताकि उसके शरीर में डाली गई फ़ॉरेन बॉडी यानी किडनी को वो रिजेक्ट न करे।

भारत में किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर नियम
किडनी ट्रांसप्लांट का फ़ैसला लिए जाने के बाद अस्पताल की जांच समिति ये तय करती है कि डोनर कौन हो सकता है। अस्पताल की तरफ़ से बनी ये समिति डोनर की जांच-परख करती है। जांच में ये देखा जाता है किडनी दान करने वाला व्यक्ति कौन है- रिश्तेदार है, दोस्त है या जानने वाला है।

साथ ही ये भी तसल्ली की जाती है कि डोनर किसी दबाव में तो ऐसा नहीं कर रहा या फिर कमर्शियल तो नहीं?इसके बाद समिति राज्य की अथॉरिटी के पास इसे भेजती है और उसकी स्वीकृति लेती है। यहां भी पूरी पड़ताल होने के बाद ट्रांसप्लांट की अनुमति दी जाती है।

वहीं अगर केडेवर आर्गन ली जा रही है तो ऐसे मरीज़ जिनका नाम अस्पताल के वेटिंग लिस्ट में होता है उसे किडनी नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन (नोटो) या उसके अंतर्गत आने वाली रीजनल या स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन (रोटो या सोटो) जैसी संस्थाओं की सहमति के बाद सूची के हिसाब से अंग उपलब्ध कराया जाता है।

किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मरीज़ विदेश क्यों जाते हैं
अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा देश है जहां किडनी या अंगों का ट्रांसप्लांट सबसे ज़्यादा होता है। ये आंकड़ा ग्लोबल ऑब्ज़र्वेटरी ऑन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांटेशन ने जारी किया है। भारत में ट्रांसप्लांटेशन ऑफ़ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यू एक्ट, 1994 बनाया गया। इसमें समय-समय पर कई संशोधन भी किए गए। अंगदान का व्यवसायीकरण रोकने और शरीर से अंगों को हटाने की प्रक्रिया के तहत लाने और केवल मेडिकल ज़रूरतों के मक़सद से ये क़ानून लाया गया था।

डॉक्टर सौरभ शर्मा बताते हैं कि केंद्र सरकार ने इसे लेकर जो क़ानून बनाया है, वही लागू होता है, लेकिन कुछ राज्यों में इसे लेकर क़ानून थोड़ा अलग है। वैसे कुल मिलाकर प्रतिरोपण को लेकर एक जैसा ही क़ानून लागू है। इन डॉक्टरों से जब मैंने सवाल किया कि भारत में अगर सारी सुविधाएं मौजूद हैं, तो भारतीय ट्रांसप्लांट के लिए विदेश क्यों जाते हैं? इस पर इनका कहना था कि लोगों की निजी इच्छा पर भी निर्भर करता है।

इस बीच डॉक्टर सौरभ एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहते हैं कि विदेशों में 95 प्रतिशत ट्रांसप्लांट मृत व्यक्ति के अंग से होते हैं और केवल पांच फ़ीसदी जीवित लोग अंगदान करते हैं। हालांकि भारत में पिछले कुछ वर्षों में अंगदान को लेकर जागरूकता बढ़ी है, फिर भी लोग अपने मृत रिश्तेदारों का अंगदान करने के लिए ज़्यादा आगे नहीं आ रहे हैं। इस स्थिति में मरीज़ों को कई वर्षों का इंतज़ार करना पड़ता है।
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