अमित सैनी, बीबीसी हिंदी के लिए, मुज़फ़्फ़रनगर (यूपी) से, दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली से
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में कांवड़ यात्रा के दौरान इसके यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले सभी मुसलमान मालिकों के सभी होटल और ढाबे बंद रहे। इनमें मांसाहारी और शाकाहारी, दोनों तरह के ही होटल शामिल थे।
कांवड़ यात्रा मार्ग के वे सभी होटल और ढाबे क़रीब 15 दिन बंद रहे, जिनके मालिक या स्टाफ़ मुसलमान हैं। हालांकि अब ये होटल और ढाबे धीरे-धीरे खुलने लगे हैं लेकिन अब इनके सामने एक नई चुनौती है।
मुज़फ़्फ़रनगर में एक हिंदूवादी संत ने इन ढाबों के ख़िलाफ़ अब धरना शुरू कर दिया है। दो हफ़्ते तक होटलों के बंद रहने की वजह से इनके मालिकों को आर्थिक नुक़सान भी हुआ है।
कांवड़ यात्रा के मार्गों पर हाल के वर्षों की कांवड़ यात्रा के दौरान मांस या मछली की दुकानें बंद करवाई जाती रही हैं। लेकिन इस बार मुसलमान मालिकों के शाकाहारी होटल भी बंद करवा दिए गए।
इस बारे में मुज़फ़्फ़रनगर के सिटी मैजिस्ट्रेट विकास कश्यप ने एक बयान में कहा, “कांवड़ यात्रा के दौरान पिछली बार एक घटना प्रकाश में आई थी। इस बार सभी होटल मालिकों की बैठक की गई और उन्हें निर्देशित किया गया कि जो आपका नाम है वही डिस्पले कीजिए, इसके अलावा कुछ और नहीं।”
वहीं मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िलाधिकारी अरविंद बंगारी ने इस विषय पर ये कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि अब कांवड़ यात्रा समाप्त हो गई है और कोई विवाद नहीं है।
कांवड़ मार्ग पर मुस्लिमों के शाकाहारी होटल और ढाबे क्यों बंद कराए गए? उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा और कितना नुक़सान हुआ? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमने मुज़फ़्फ़रनगर के कई ढाबा मालिकों से बात की।
ढाबा मालिकों का क्या है कहना?
कांवड़ यात्रा के मुख्य मार्ग एनएच-58 पर बाग़ों वाली चौराहा स्थित पंजाबी न्यू स्टार शुद्ध ढाबा पर हमारी मुलाक़ात सोनू पाल और सादिक़ त्यागी से हुई।
सोनू पाल बताते हैं, “मैं होटल का मालिक हूं, लेकिन मोहम्मद यूसुफ़ उर्फ़ गुड्डू होटल में पार्टनर है। ज़मीन भी मुस्लिम की ही है, जिनका नाम आलम है।”
सोनू कहते हैं, “कांवड़ का सीज़न था और प्रशासन ने हमारा होटल बंद करा दिया। फूड लाइसेंस से लेकर सारा काम मेरे यानी सोनू के नाम से ही हैं।”
वे बताते हैं, “30-35 लड़कों का स्टाफ़ है, सभी खाली पड़े रहे। सीज़न की वजह से एडवांस में सामान भी लाकर रखा हुआ था। सब ख़राब हो गया। हमे क़रीब तीन-चार लाख का नुक़सान हुआ है।”
सोनू दावा करते हैं, “किसी भी तरह का नोटिस नहीं मिला। केवल दो-चार पुलिस वाले आए और होटल बंद करा दिया। पूछने पर जवाब मिला कि तुम मुसलमान होकर हिंदू के नाम पर होटल चला रहे हो।”
मुज़फ़्फ़रनगर प्रशासन ने ऐसे होटल बंद किए जाने को लेकर कोई लिखित आदेश जारी नहीं किया था।
हालांकि ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि ऐसे होटल बंद कराए गए हैं जिनके मालिक मुसलमान हैं और नाम हिंदू हैं। आगे के लिए भी कोई आदेश अभी जारी नहीं हुआ है।
एनएच-58 पर स्थित वेलकम टू पिकनिक पॉइंट टूरिस्ट ढाबा का कांवड़ यात्रा से पहले तक नाम ओम शिव वैष्णो ढाबा था। लेकिन कांवड़ यात्रा के दौरान हुए विरोध के बाद अब इसका नाम बदल दिया गया है।
ढाबा मालिक आदिल राठौर कहते हैं, “इस होटल को पहले कंवरपाल ओम शिव वैष्णो ढाबा के नाम से चला रहे थे। इसे फिर हमने किराए पर ले लिया और इसी नाम से चलाते रहे।”
आदिल बताते हैं, “हम वेज खाना बनाते हैं। पूरा स्टाफ़ मिंटू, अमन, सोनू, बिजेंद्र और विक्की आदि सब हिंदू हैं। अंडा या प्याज़-लहसुन तक इस्तेमाल नहीं करते। फिर भी हमारे होटल को 4 तारीख़ को बंद करवा दिया। आज ही खोला है। हमें क़रीब 4-5 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।”
वे कहते है, “कुछ स्टाफ़ बच्चों समेत ढाबे पर रहते हैं। ढाबा बंद होने के दौरान खाने-पीने की भी दिक्कत हुई। मेरा गांव 30 कि।मी। दूर खतौली के पास खोकनी नगला है, वहां से मेरा भाई ज़रूरत का सामान लेकर यहां आया।”
आदिल ये भी कहते हैं, किराया, बिजली का बिल और कारीगरों को वेतन देने की चिंता सता रही है। पता नहीं था कि इससे किसी हिंदू को परेशानी हो जाएगी। इससे पहले भी मीरापुर में बाबा अमृतसरी के नाम से कई साल होटल चला चुके हैं। वहां किसी को कोई परेशानी नहीं हुई।
'शाकाहारी खाना ही बनाया है, आगे भी शाकाहारी ही बनाएंगे'
आदिल के पिता सनव्वर राठौर ने भी यही बताया, “पहले इस होटल का नाम ओम शिव वैष्णो ढाबा था, जिसे कंवरपाल चला रहे थे। हमे ज्यों का त्यों दे दिया गया तो हमने ऐसे ही चला दिया।”
सनव्वर राठौर कहते हैं, “हम मुस्लिम राजपूत हैं। हम हिंदू देवी-देवताओं का सम्मान करते हैं। हमने जब से ढाबागिरी की है, तभी से शुद्ध शाकाहारी खाना ही बनाया है और आगे भी शाकाहारी ही बनाएंगे।”
सनव्वर कहते हैं, “चाहते तो हम मुस्लिम ढाबा भी चला सकते थे। लेकिन आनंद शाकाहारी खाना बेचने में ही आता है। नाम को लेकर किसी को आपत्ति हुई तो पुलिस के कहने पर हमने बदलकर वेलकम टू पिकनिक पॉइंट टूरिस्ट ढाबा कर दिया। अब आगे से हम इसी नाम से चलाते रहेंगे।”
'हमने कोई पहचान नहीं छिपाई'
हम इसी मार्ग पर आगे बढ़े तो नेशनल हाइवे भोपा बाइपास के पास चंडीगढ़ दा ढाबा दिखाई दिया। यहां पहुंचने पर हमारी मुलाक़ात अफ़सर अली से हुई।
अफसर अली ने बताया, “मैं यहां पर कर्मचारी हूं। मालिक कोई और है। दो कर्मचारी यहां मुस्लिम और सात हिंदू हैं। जो मुस्लिम कर्मचारी हैं, उनका काम केवल बिलिंग और सामान लाने-ले जाने का है। बाकी सारा काम हिंदू कर्मचारी ही करते हैं।”
वे कहते हैं, “कोरोना काल से होटल इंड्रस्टी का मामला गड़बड़ ही है। खर्च निकालना ही बहुत भारी हो जाता है। कांवड़ यात्रा और गर्मियों की छुट्टियां जैसे जो बड़े सीज़न आते हैं, होटल वालों का काम इन्हीं पर निर्भर रहता है। उन दिनों में ही साल भर का खर्चा निकलना होता है। इसमे हमें लाखों रुपये का नुकसान तो हुआ ही है, कर्मचारियों को भी नुक़सान हुआ है।”
अफसर कहते हैं, “ये शुद्ध शाकाहारी होटल है। यहां हम अंडा भी नहीं बनाते। क्योंकि ये हरिद्वार जाने का रास्ता है। हमें पता है कि यहां से बहुत से लोग अस्थियां लेकर भी जाते हैं। हम उनकी आस्था का पूरा सम्मान करते हैं।”
पहचान छिपाने की बात पर अफ़सर कहते हैं, “चंडीगढ़ से प्रेरित होकर ही होटल का नाम चंडीगढ़ पर रखा था। हमने कोई पहचान नहीं छिपाई है। बाक़ायदा रजिस्ट्रेशन चस्पां किया हुआ है।”
वे बताते हैं, “चौकी इंचार्ज आए थे। माहौल ख़राब होने की आशंका जताते हुए बंद करने को कहा था। उन्हीं के कहने पर हमने बंद किया था।”
हालांकि वो दावा करते हैं कि पुलिस ने प्रशासन की ओर जारी कोई नोटिस नहीं दिखाया, सिर्फ़ मौखिक आदेश दिया कि ढाबा बंद रखना है।
'मुस्लिम मालिक होने से दिक्कत नहीं होनी चाहिए'
सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो भी आते हैं जिनमें मुसलमानों के होटलों पर गंदगी होने और उनके खाने में मांस आदि मिलाने के दावे किये जाते हैं।
अफ़सर इस तरह के आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहते हैं, “अगर किसी के पास सबूत है तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन ये कहना सरासर ग़लत है कि ऐसा सभी करते हैं।”
जो हिंदूवादी संगठन मुसलमान मालिकों के होटलों के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं वो भी इसी तरह के दावे करते हैं।
चंडीगढ़ दा ढाबा पर खाना बनाने वाले भोजराम कहते हैं, “मुझे यहां पर खाना बनाते हुए चार साल हो गए हैं। यहां पर अंडा, मांस-मछली कुछ नहीं बनता है। बिल्कुल शाकाहारी है। जैसा दावे किए जा रहे हैं, ऐसा कुछ नहीं है।”
ललित दीक्षित यहां के नियमित ग्राहक हैं। ललित ने बताया, “हम पिछले दो-तीन सालों से यहां खाना खाने आ रहे हैं। ज़्यादातर हम लंच यहीं करते हैं। हम ख़ुद पंडित हैं। हमें पता है ये शुद्ध शाकाहारी है और कारीगर भी हिंदू हैं। मुस्लिम मालिक होने से हमें कोई दिक्कत नहीं है और किसी और को भी नहीं होनी चाहिए।”
'आरोप बेतुके, बेबुनियाद और घटिया हैं'
जब हम वापस हरिद्वार जाने वाले रास्ते से लौट रहे थे तो हमारी नज़र भगवान गणेश की तस्वीर लगे बंद पड़े न्यू गणपति टूरिस्ट ढाबा नंबर-1 पर पड़ी। यहां पर बझेड़ी गांव के रहने वाले वसीम मिले, जो बतौर मैनेजर इस ढाबे पर कार्यरत हैं।
वसीम ने बताया, “ये होटल क़रीब दस साल से इसी नाम से चल रहा है। ज़मीन बागों वाले निवासी नसीम अहमद की है। पहले इसे वीरपाल चलाते थे। उनसे हमने ले लिया। क़र्ज़ की वजह से क़रीब दो साल पहले मैंने होटल अपने परिचित पुष्पराज सिंह उर्फ़ सोनू को बेच दिया।”
वसीम कहते हैं, “पुष्पराज के कहने पर मैं होटल संभाल ज़रूर रहा हूं, लेकिन मालिक वो ही हैं। अब कांवड़ यात्रा के दौरान एक विवाद खड़ा हो गया। प्रशासन के कुछ लोग आए और एतराज़ उठाया कि, तुम मुसलमान हो। इस वजह से इस नाम और फ़ोटो को लगाकर होटल नहीं चला सकते।”
वसीम कहते हैं, “हमारा होटल रंजिश के कारण बंद कराया गया। सभी स्टाफ़ हिंदू हैं। कांवड़ के दौरान दो-चार रुपये कमाने का वक़्त था, लेकिन हमारी वजह से मालिक का एक-डेढ़ लाख रुपये का नुक़सान हो गया।”
वसीम ये भी बताते हैं, “संतोष नामक कर्मचारी ने होटल बंद होने पर बाहर चाय की टपरी लगा ली, लेकिन पुलिस ने उसे भी बंद करा दिया।”
हिंदूवादी संगठनों के आरोपों पर वसीम कहते हैं, “पूरा स्टाफ़ हिंदू है। वो ऐसे कैसे खाने में कुछ मिला सकते हैं? सभी आरोप बेतुके, बेबुनियाद और घटिया हैं। ऐसा न था और न ही होगा।”
होटल का नाम बदलने और फ़ोटो हटाने के सवाल पर वसीम कहते हैं, “मैं तो कर्मचारी हूं। मालिक ही जाने कि बंद करेंगे या चलाएंगे। हालांकि मेरी राय में ये नहीं लगता कि वो नाम बदलेंगे। नाम तो शायद ये ही रहेगा। क्योंकि वो भी तो हिंदू ही हैं। तो क्या वो देवी-देवताओं की तस्वीरें नहीं लगा सकते?”
'मुसलमान अपने नाम पर कारोबार चलाएं, हमें कोई दिक्कत नहीं'
इसी रास्ते पर इसी होटल से मिलते जुलते नाम गणपति टूरिस्ट ढाबा नंबर-1 है। इस होटल के बड़े-बड़े होर्डिंग और बोर्ड लगे हुए हैं। सभी पर गुप्ता जी की फ़ोटो लगी हुई है।
हमने होटल मालिक से बात की तो वो बोले, “मेरी राय में मुस्लिमों को अपने ही नाम पर होटल के नाम रखने चाहिए। मुस्लिमों ने हिंदुओं के नाम पर होटल खोले हुए हैं। ये अपना नाम रखें। चाहे कुछ भी रखें। ये ग़लत ही तो है। सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए।”
गुप्ता कहते हैं, “हमारा गणपति होटल है। मुसलमानों ने भी अपने होटल के नाम में गणपति ही लगाया हुआ है। नाम बदलकर काम कर रहे हैं। अपने आप को लाला कहलवा रहे हैं। ऐसे कई सारे होटल हैं।”
अपना पूरा नाम बताने से इनकार करते हुए गुप्ता जी बताते हैं, “हिंदू स्टाफ़ रखने से मतलब नहीं है। अपना नाम रखें न, या फिर प्रोपराइटर में अपना नाम लिखें ताकि लोगों को पता चले। फिर हमें कोई दिक्कत नहीं है।”
भारत का संविधान सभी को बराबरी का हक़ देता है और हर नागरिक के पास कारोबार करने का अधिकार है। फिर किसी के कारोबार से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है?
इस सवाल पर गुप्ता जी दावा करते हैं, “मुसलमान नाम बदलकर धोखाधड़ी करते हैं। खाने में थूक देते हैं। इस तरह के होटल बंद हुए थे। ये फिर खुल गए हैं। हमारे आसपास भी ऐसे कई होटल हैं।”
हालांकि वे इस तरह के आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं पेश कर पाते और न ही बीबीसी हिंदी इस तरह के दावों की पुष्टि करता है। वे ये ज़रूर कहते हैं कि सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो आते रहते हैं।
वे कहते हैं, “सभी अपने कारोबार को अपने-अपने नाम से चलाएं। रोजी रोटी सबको चाहिए, लेकिन ये ग़लत हो रहा है। हमारे भगवान के नाम पर क्यों किया जा रहा है? जिसे मानते हैं, उसी के नाम से होटल चलाए, फिर हमें कोई दिक्कत नहीं।”
मुसलमानों के शाकाहारी ढाबों के ख़िलाफ़ अभियान
मुज़फ़्फ़रनगर में मुसलमानों के शाकाहारी ढाबों के ख़िलाफ़ स्वामी यशवीर ने अभियान चलाया है। संत होने का दावा करने वाले स्वामी यशवीर का आश्रम बघरा में है।
स्वामी यशवीर दावा करते हैं, “कई मुसलमानों के ऐसे होटल हैं, जो हिंदूओं और हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर हैं। यात्रा के दौरान हिंदू नाम और फ़ोटो देखकर इन होटलों पर खाना खाते हैं।”
स्वामी यशवीर ने कई ऐसे उदाहरण दिए और बोले, “ये लोग खाने में थूक भी रहे हैं और मूत्र भी कर रहे हैं। तो ऐसे जिहादियों पर हम विश्वास नहीं कर सकते।”
स्वामी यशवीर ने इन होटलों पर खाने में थूकने, मूत्र करने और गाय का मांस डाले जाने की आशंका भी जताई।
यशवीर कहते हैं, “इसलिए हमने इनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। ये लोग मुस्लिम होकर हिंदू या हिंदू देवी-देवताओं के नाम से नहीं, बल्कि अपने और अपने मज़हब के नाम से होटल चलाए तो हमे कोई परेशानी नहीं है।”
कांवड़ यात्रा के दौरान बंद होने वाले मुस्लिम होटलों पर हिंदू स्टाफ़ को लेकर स्वामी यशवीर कहते हैं, “ये सब भ्रमित करने वाली बात है। इन होटलों के संचालक भी मुसलमान हैं और स्टाफ़ भी मुसलमान हैं।”
कांवड़ यात्रा के दौरान बंद हुए होटलों के दोबारा खोले जाने को लेकर स्वामी यशवीर महाराज कहते हैं, “अगर नाम नहीं बदले तो हम उन्हीं होटलों के बाहर से शांति पूर्वक धरना प्रदर्शन करना शुरू कर देंगे।”
ग्राहक किस होटल पर खाना खाएंगे ये उनकी अपनी पसंद है लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर में इस तरह के आरोपों और अभियान के चलते एक वर्ग को कारोबार से दूर किया जा रहा है। इसे लेकर मुसलमान होटल मालिकों में चिंता भी व्याप्त है।
आदिल सवाल उठाते हैं, “हम कई सालों से यहीं कारोबार करते आ रहे हैं। अगर हमारे होटल बंद कराए गए तो हम आगे क्या करेंगे? हमें कारोबार करने का हक़ है। हम ये समझ नहीं पा रहे कि हमारे साथ ऐसा भेदभाव क्यों हो रहा है।”
उधर स्वामी यशवीर महाराज कांवड़ यात्रा के ख़त्म होने के बाद खुले इन ढाबों के ख़िलाफ़ एक बार फिर सड़क पर उतरते हुए मुज़फ़्फ़रनगर ज़िलाधिकारी के दफ़्तर के बाहर अपने समर्थकों के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं।