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Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 18 अप्रैल 2023 (08:07 IST)

कर्नाटक में जगदीश शेट्टार कांग्रेस के साथ, कितना होगा बीजेपी को नुकसान

कर्नाटक में जगदीश शेट्टार कांग्रेस के साथ, कितना होगा बीजेपी को नुकसान - karnataka election : jagdish shettar joins congress, what will be effect on bjp
इमरान कुरैशी, बीबीसी हिंदी के लिए
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के प्रमुख नेता रहे जगदीश शेट्टार के स्वागत के लिए कांग्रेस नेताओं की कतार ने लिंगायत समुदाय के इस नेता की पार्टी के लिए अहमियत जाहिर की।
 
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सबसे दमदार महासचिव केसी वेणुगोपाल, कर्नाटक कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने के फ़ैसले के लिए शेट्टार की तारीफ की।
 
तथ्य ये है कि बीते कुछ दिनों में दो लिंगायत नेताओं पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी और शेट्टार ने सदस्यता लेकर कांग्रेस को मजबूती दी है। कम से कम ये तो माना ही जा रहा है कि ये कांग्रेस की लिंगायत वोट बेंक में सेंध लगाने की कोशिश है।
 
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर ए नारायण ने बीबीसी से कहा, "साफ़ कहूं तो अगर कांग्रेस मजबूत होती तो इसने दोनों को न कह दिया होता। शेट्टार आरएसएस की पृष्ठभूमि की वजह से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। मूलरूप से इसके जरिए कांग्रेस की ललक जाहिर होती है।"
 
कांग्रेस के लिए 18 अक्टूबर 1990 के बाद से लिंगायत समुदाय के वोट में हिस्सेदारी बढ़ाना मुश्किल रहा है। तब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राजीव गांधी ने लिंगायत समुदाय के मजबूत नेता वीरेंद्र पाटील को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था। उस वक़्त वो लकवे का शिकार हुए थे और अयोध्या शिलान्यास के बाद राज्य झुलस रहा था।
 
हालांकि, कांग्रेस को लिंगायत वोटरों के छोटे हिस्से का समर्थन मिलता रहा है। वो भी तब जबकि लोकशक्ति पार्टी के रामकृष्ण हेगड़े और उनके बाद बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा के पास राज्य के लिंगायत वोटों का बड़ा हिस्सा रहा है।
 
शेट्टार और सावदी का कितना असर
 
प्रोफ़ेसर नारायण कहते हैं कि शेट्टार के बीजेपी से अलग होने के दो अहम 'सांकेतिक' अर्थ हैं। वो कहते हैं, " कर्नाटक बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है। ख़ासकर चुनाव के वक़्त यही लगता है। दूसरी बात है कि बीजेपी लिंगायतों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं कर रही है। हकीकत में कहें तो उनका कद घटाने की कोशिश कर रही है।"
 
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने प्रोफ़ेसर नारायण की बातों से सहमति जाहिर की। उन्होंने कहा, "इसे लेकर लिंगायत दोबारा ज़रूर सोचेंगे। कम से कम बीजेपी को अपने समर्थन पर वो कुछ हद तक विचार ज़रूर करेंगे। शेट्टार एक वरिष्ठ, सम्मानित और विवादों से परे नेता हैं।"
 
शेट्टार लिंगायतों के बनजिगा संप्रदाय से आते हैं और सावदी गनिगा (उत्तर भारत में तेली ) संप्रदाय से आते हैं। दोनों नेताओं का इन दो संप्रदायों में अच्छा समर्थन है, ख़ासकर उत्तरी कर्नाटक के ज़िलों में।
 
रानी चेन्नम्मा यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान की प्रोफ़ेसर कमलाक्षी जी तदपाद ने बीबीसी से कहा, "इन दो नेताओं के बीजेपी छोड़ने से पूरे लिंगायत समुदाय पर भले ही असर नहीं होगा। अभी ये कहना मुश्किल है कि इसका कितना और किन विधानसभाओं में असर होगा लेकिन इसका कुछ असर होगा।"
 
प्रोफ़ेसर कमलाक्षी कहती हैं कि बीजेपी नेतृत्व 'पार्टी के अंदरुनी लोकतंत्र को दुरुस्त करने की कोशिश में है। वो चार या छह बार विधायक रहे नेताओं की जगह युवा नेताओं को मौका दे रहे हैं।'
 
बीजेपी को मिलेगी कितनी मदद
लेकिन सभी लोग इस विचार से सहमत नहीं हैं। लिंगायत समुदाय भीतर भी कुछ लोग हैं जो इसे कम्युनिटी को किनारे करने की सोची समझी कोशिश बता रहे हैं।
 
डॉ एसएम जामदार जातिका लिंगायत महासभा के महासचिव हैं। उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, "जो घटनाक्रम हुआ है उससे ज़ाहिर हो रहा है कि वे समुदाय को नज़रअंदाज़ करना चाहते हैं। येदियुरप्पा से ज़बरदस्ती इस्तीफ़ा लेने के बाद ऐसी कई बातें हुई हैं जो इस जज़्बात को बल देती हैं। लिंगायतों को नज़रअंदाज़ कर कर्नाटक में एक ग़ैर-लिंगायत नेतृत्व तैयार करने की कोशिश है।"
 
कर्नाटक में कांग्रेस के अध्यक्ष डी शिवकुमार कहते हैं, "ये लिंगायतों के ख़िलाफ़ साज़िश है। ये उन्हें जानबूझ कर किनारे करने की योजना है। कांग्रेस पार्टी सभी समुदायों को बराबर सम्मान देगी और किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा।''
 
इस नैरेटिव को आने वाले तीन हफ़्तों में किस तरह से तराश कर जनता के बीच पेश जाएगा ये भी दिलचस्प होगा। लेकिन बीजेपी भी हालात को हाथों से निकलने नहीं दे रही है। मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने साफ़ कहा है कि 'डैमेज कंट्रोल' किया जाएगा।
 
लेकिन एक मुद्दा है जिसके बारे में दोनों पार्टियों पर शेट्टार और सावदी के बीजेपी छोड़ने के असर का आकलन होना बाक़ी है। वो है लिंगायत समुदाय के पंचसाली संप्रदाय का मूड। ये संप्रदाय पिछले महीने तक प्रदर्शन करता रहा है।
 
प्रत्यक्ष तौर पर राजीतिक टीकाकार पंचसाली संप्रदाय को मूड को अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं। इस संप्रदाय ने अपना आंदोलन उस समय वापस ले लिया था जब सरकार ने लिंगायत और वोकालिग्गा - दोनों समुदायों के आरक्षण में दो-दो फ़ीसदी बढ़ोतरी कर दी थी।
 
दरअसल ये वो चार प्रतिशत आरक्षण है जिसे मुसलमानों से हटाकर, इन दोनों समुदायों में बराबर बांट दिया था। पार्टी के कुछ लोग नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि नेतृत्व को अहसास है कि पंचसाली संप्रदाय को एक अलग कैटेगरी न बनाए जाने से आक्रोश है। सरकार ने उन्हें पूरे लिंगायत समुदाय के साथ जोड़ दिया है।
 
नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के एक नेता ने बीबीसी हिंदी को बताया, "ऐसा लगता नहीं कि सावदी और शेट्टार पंचसाली संप्रदाय को ये समझा पाएं कि बीजेपी सरकार भरोसा करने के लायक़ नहीं है। वैसे ही आरक्षण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट के पास है।''
 
कांग्रेस के एक नेता ने भी इस बारे में कहा, "जब पंचसाली प्रदर्शन कर रहे थे तो कांग्रेस उन्हें अपने पक्ष में नहीं कर पाई क्योंकि पार्टी में कोई भी इस संप्रदाय का नेता नहीं है। शायद यही वजह है कि पार्टी शेट्टार और सावदी के आगमन से काफ़ी उत्साहित है।
 
ये साफ़ नहीं है कि शेट्टार और सावदी को राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में किन पदों का आश्वासन दिया गया। क्या मालूम उस समय एक बार फिर से इन सभी धड़ों में टकराव के हालात बनें।
चित्र सौजन्य : कर्नाटक कांग्रेेस ट्विटर अकाउंट
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