कीर्ति दुबे, बीबीसी संवाददाता
साल 2020 से भारत और चीन की सीमाओं पर गतिरोध बना हुआ है, दोनों देशों के बीच हालिया सीमा विवाद का मामला डोकलाम, लद्दाख की गलवान घाटी से शुरू हुआ और अब अरुणाचल के तवांग सेक्टर तक पहुंच चुका है। दोनों देशों के बीच रिश्तों की तल्खी और सीमा पर तनाव छिपा नहीं है, और अब इस बीच तीन साल बाद पहली बार भारतीय विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी सीमा मामले पर चीन से बातचीत करने बीजिंग पहुंचे।
भारतीय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) शिल्पक अम्बुले 'वर्किंग मैकेनिज़्म फॉर कंस्लटेशन एंड को-ऑर्डिनेशन ऑन इंडिया-चाइना बॉर्डर अफ़ेयर' यानी डब्ल्यूएमसीसी में शामिल होने बीजिंग पहुंचे।
जुलाई 2019 के बाद ये पहली बार है जब डब्ल्यूएमसीसी की बैठक में दोनों देशों के नेता आमने-सामने मिले हैं। लद्दाख में मई 2020 में हुई घटना के बाद दोनों देशों के बीच 11 डब्ल्यूएमसीसी की बैठकें हुईं लेकिन ये वीडियो- कॉन्फ्रेंस के ज़रिए की गई थीं। हालांकि इन बैठकों में भारत को बहुत बड़ा कुछ हासिल नहीं हुआ।
इस बार भारत के वरिष्ठ राजनयिक शिल्पक अंबुले बीजिंग में हैं। विदेश मंत्रालय में पूर्वी एशिया इलाके के संयुक्त सचिव भारत के साथ चीन, जापान और कोरिया के रिश्तों को देखते हैं।
अंबुले ने बुधवार को चीन के सहायक विदेश मंत्री हुआ चुनयिंग से भी मुलाकात की, और एक संक्षिप्त चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों और सीमा पर स्थिति की चर्चा की।
मैंड्रिन भाषा की बेहतरीन समझ रखने वाले अंबुले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चीनी नेताओं की बैठक के दौरान आधिकारिक ट्रांसलेटर के तौर पर भी काम कर चुके हैं।
जैसा कि इस बैठक के नाम से ही ज़ाहिर है। सीमा पर जारी तनाव इस बैठक का मुख्य एजेंडा है। भारत और चीन दोनों ने अपनी-अपनी तरफ़ से लद्दाख सेक्टर में 50 हजार से अधिक सैनिकों को तैनात किया है, और बीते दिसंबर अरुणाचल प्रदेश में तवांग के पास यांग्त्से में सैनिकों के बीच झड़प में दोनों पक्षों के कई सैनिकों के घायल होने के बाद ये तनाव और बढ़ गया है।
इस घटना पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनों सदनों में बयान दिया था और कहा था कि भारत सीमा पर किसी गतिविधि का जवाब देने के लिए तैयार है।
विदेश विभाग ने इस बैठक को लेकर जो आधिकारिक बयान जारी किया है उसमें कहा गया है, "दोनों पक्षों ने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति की समीक्षा की और अन्य सीमा क्षेत्रों में कंस्ट्रक्टिव तरीके से पीछे हटने के प्रस्तावों पर चर्चा की।"
"जो पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर शांति की बहाली में मदद करेगा और द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य स्थिति की बहाली के लिए स्थितियां पैदा करेगा।"
"मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार इस उद्देश्य को पाने के लिए, दोनों देश, वरिष्ठ कमांडरों की बैठक के अगले (18वें) दौर को आयोजित करने पर सहमत हुए हैं।"
डब्ल्यूएमसीसी की आखिरी बैठक लद्दाख में गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स पर डिसइंगेजमेंट (वह सैन्य प्रक्रिया जब दो पक्ष तनाव कम करते हैं) होने के एक महीने बाद बीते साल अक्टूबर में हुई थी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ बीते साल सितंबर में भारतीय और चीनी सेना के बीच गोगरा-हॉटस्प्रिंग में पेट्रोलिंग पिलर 15 पर डिसइंगेजमेंट हुआ था और इसके बाद दोनों पक्षों के बीच इलाके के अन्य पेट्रोलिंग पिलर पर भी डिसइंगेजमेंट हुए थे। हालांकि, चीनी सेना ने अभी भी डेपसांग और चारिंग नाला क्षेत्रों में एलएसी पर भारतीय सेना के पारंपरिक पेट्रोलिंग क्षेत्रों तक पहुंचने के रास्ते को ब्लॉक करके रखा है।
इसी सप्ताह समाचार एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, "हम सीमा पर जो इंफ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं वो इस लिए बना रहे हैं क्योंकि चीन ने वहां काफ़ी बड़े स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए हैं। हमें ये 25 साल पहले ही करना चाहिए था।"
"चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के समझौते को तोड़कर जो परिस्थिति पैदा की भारत उसका जवाब दे रहा था। चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत छोटी, तो क्या हम बड़ी अर्थव्यवस्था से लड़ाई करें?"
इस बैठक से हासिल क्या होगा?
लेकिन तीन साल बाद हो रही इस आमने-सामने बैठक से भारत को किस हद तक फ़ायदा होगा और इसके मायने क्या हैं?
दिल्ली में चीनी मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ैसल अहमद कहते हैं, "डब्ल्यूएमसीसी एक लंबी प्रक्रिया है, इस मैकेनिज्म से फौरी निष्कर्ष तो नहीं निकलता लेकिन एक 'डीप-रूटेड' निष्कर्ष ज़रूर निकलते हैं।"
"साल 2020 से 11 डब्ल्यूएमसीसी बैठकें हो चुकी हैं लेकिन जब आप वर्चुअल बैठक ना करके आमने-सामने बैठते हैं तो उससे बेहतर संवाद तो होता ही है और आगे की बैठकों के लिए बेहतर माहौल भी तैयार होता है। "
"चीन के साथ भारत का अप्रोच टॉप टू बॉटम नहीं बल्कि बॉटम टू टॉप होना चाहिए। गतिरोध बढ़ने के बाद पहली बार दोनों देशों के राजनयिकों का आमने सामने मिलना महत्वपूर्ण तो है लेकिन अगर स्थाई और सकारात्मक नतीजे पर पहुंचना है तो ऐसी 20-30 बैठकें तो करनी ही पड़ेंगी।"
'नई संधियों की ज़रूरत'
डोकलाम में जब विवाद हुआ तो ये ट्राइजंक्शन से जुड़ा मामला था, ट्राइजंक्शन का मतलब है ऐसा क्षेत्र जिसमें तीन देशों के इलाके आते हैं। इस क्षेत्र में भारत-चीन- भूटान तीनों देशों की सीमाएं शामिल थीं।
इस विवाद में चीन और भारत दोनों ब्रितानी राज में हुई 1890 की संधि का हवाला देकर दावे करते हैं और संधि के आधार पर अपनी अलग-अलग व्याख्या करते हैं।
डॉ फ़ैसल कहते हैं, "दोनों देशों के बीच कई संधिया की गई हैं इनमें से कुछ तो उस वक्त की हैं जब देश में ब्रितानी राज था। इन समझौतों की चीन अलग तरह से व्याख्या करता है और भू-खंड पर दावा करता है और भारत की व्याख्या अलग होती है।"
"ज़रूरी है कि दोनों देशों के बीच अब नए सिरे से बात हो और आपसी सहमति से नई संधिया बनाई जाएं। ऐसा होने के लिए वक्त की ज़रूरत होगी। "
लेकिन जब वैश्विक मंच से लेकर घरेलू मंच तक विदेश मंत्री बार बार ये बात दोहराते दिखते हैं कि चीन ने अंतरराष्ट्रीय सीमा नियमों का उल्लंघन किया है तो ऐसी बयानबाज़ी का इस बैठक पर कोई असर होगा?
डॉ. अहमद नहीं मानते की विदेश मंत्री के बयान कूटनीतिक स्तर पर होने वाली बात में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
वह कहते हैं, "बयान मौजूदा जियो पॉलिटिक्स को देखते हुए दिए जाते हैं और ये ज़ाहिर तौर पर एक आम राय तो लोगों के बीच बनाती ही है लेकिन जब इस तरह के मैकेनिज़्म होते हैं जिनका फ़ोकस और एजेंडा साफ़ होता है तो दोनों देश उस बिंदु पर ही बात करते हैं जिसके लिए वो जुटे हैं।"
"भारत को द्विपक्षीय बातचीत पर ज़ोर देना चाहिए, इससे ही कुछ बेहतर होगा। रूस और चीन को लेकर अमेरिका की अलग-थलग करने की नीति के कोई बड़े फ़ायदे सामने नहीं आए हैं तो ऐसे में आमने-सामने बैठ कर की गई बात पर आधारित समाधान ही चीन के मामले में भारत के लिए सबसे बेहतर अप्रोच साबित होगा।"
2020 में चीन ने 2005, 2012 और 2013 में भारत के साथ किए गए सीमा समझौते को वर्चुअल स्तर पर ख़त्म सा कर दिया और गलवान में दोनों देशों के बीच खूनी झड़प हुई, जिसमें भारत के 20 सैनिक मारे गए और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए।