गुरप्रीत सैनी, बीबीसी संवाददाता
भारत और चीन के बीच एक बार फिर सीमा विवाद बढ़ता दिख रहा है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग में दोनों देशों के सैनिकों के बीच 9 दिसंबर 2022 को झड़प हुई। भारतीय सेना का कहना है कि झड़प में दोनों देशों के कुछ सैनिक घायल हुए हैं लेकिन घायल होने वाले चीनी सैनिकों की संख्या अधिक है।
साल 1975 के बाद से दोनों देशों के सैनिकों के बीच साल 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में एक ख़ूनी झड़प हुई थी। इसमें बीस भारतीय सैनिक मारे गए थे।
इसके बाद चीन ने पूर्वी लद्दाख़ की पैंगोंग त्सो झील में अपनी गश्ती नौकाओं की तैनाती बढ़ाया। ये इलाक़ा लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास है। इससे पहले भी ख़बर आई थी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देश अपने सैनिकों की मौजूदगी बढ़ा रहे हैं।
उस समय भारत ने कहा था कि अक्साई चिन में स्थित गलवान घाटी के किनारे, चीनी सेना के कुछ टेंट देखे गए हैं। इसके बाद भारत ने भी वहां फ़ौज की तैनाती बढ़ा दी।
चीन का आरोप था कि भारत गलवान घाटी के पास रक्षा संबंधी ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कर रहा है। लेकिन भारत और चीन अलग-अलग इलाक़ों में इस तरह के विवादों में आख़िर क्यों उलझ जाते हैं?
सालों पुराना सीमा विवाद
भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुज़रती है।
ये सरहद तीन सेक्टरों में बंटी हुई है - पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है क्योंकि कई इलाक़ों के बारे में दोनों के बीच मतभेद हैं।
भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है लेकिन ये इलाक़ा फ़िलहाल चीन के नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था।
वहीं पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है। चीन कहता है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है।
चीन का कहना है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने ये समझौता किया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था। उसका कहना है कि तिब्बत चीन का अंग रहा है इसलिए वो ख़ुद कोई फ़ैसला नहीं ले सकता।
दरअसल 1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र लेकिन कमज़ोर मुल्क था लेकिन चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र मुल्क नहीं माना। 1950 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में ले लिया। कुल मिलाकर चीन अरुणाचल प्रदेश में मैकमोहन लाइन को नहीं मानता और अक्साई चिन पर भारत के दावे को भी ख़ारिज करता है।
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल
इन विवादों की वजह से दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सका। यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि अभी ये भी स्पष्ट नहीं है। दोनों देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं।
इस लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर कई ग्लेशियर, बर्फ़ के रेगिस्तान, पहाड़ और नदियां पड़ती हैं। एलएसी के साथ लगने वाले कई ऐसे इलाक़े हैं जहां अक्सर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव की ख़बरें आती रहती हैं।
पैंगोंग त्सो पर विवाद
134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो हिमालय में क़रीब 14,000 फुट से ज़्यादा की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील का 45 किलोमीटर हिस्सा भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के बीच से गुज़रती है।
कहा जाता है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ़ से अतिक्रमण के एक तिहाई मामले इसी पैंगोंग त्सो के पास होते हैं। इसकी वजह ये है कि इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर सहमति नहीं है। दोनों ने अपनी अलग-अलग एलएसी तय की हुई है।
इसलिए विवादित हिस्से में कई बार दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सामने वाले देश के सैनिक उनके क्षेत्र में आ गए हैं।
रणनीतिक तौर पर भी इस झील का काफ़ी महत्व है, क्योंकि ये झील चुशूल घाटी के रास्ते में आती है, चीन इस रास्ते का इस्तेमाल भारत-प्रशासित क्षेत्र में हमले के लिए कर सकता है।
साल 1962 के युद्ध के दौरान यही वो जगह थी जहां से चीन ने अपना मुख्य आक्रमण शुरू किया था। ऐसी ख़बरें भी आई हैं कि पिछले कुछ सालों में चीन ने पैंगोंग त्सो के अपनी ओर के किनारों पर सड़कों का निर्माण भी किया है।
गलवान घाटी का विवाद
गलवान घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चिन में है। गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक स्थित है। यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार एसडी मुनि ने बीबीसी को बताया था कि ये क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा से सटा हुआ है। 1962 की जंग के दौरान भी गलवान नदी का यह क्षेत्र जंग का प्रमुख केंद्र रहा था।
एसडी मुनि बताते हैं कि चीन गलवान घाटी में भारत के निर्माण को ग़ैर-क़ानूनी इसलिए कहता रहा है क्योंकि भारत-चीन के बीच एक समझौता हुआ है कि एलएसी को मानेंगे और उसमें नए निर्माण नहीं करेंगे।
लेकिन चीन वहां पहले ही ज़रूरी सैन्य निर्माण कर चुका है और अब वो मौजूदा स्थिति बनाए रखने की बात करता है। अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए अब भारत भी वहां पर सामरिक निर्माण करना चाहता है।
डोकलाम
साल 2017 में डोकलाम को लेकर भारत-चीन के बीच काफ़ी विवाद हुआ था। जो 70-80 दिन चला था, फिर बातचीत से सुलझा। मामला तब शुरू हुआ था जब भारत ने पठारी क्षेत्र डोकलाम में चीन के सड़क बनाने की कोशिश का विरोध किया।
वैसे तो डोकलाम चीन और भूटान के बीच का विवाद है लेकिन ये इलाक़ा सिक्किम बॉर्डर के नज़दीक ही पड़ता है। दरअसल ये एक ट्राई-जंक्शन प्वाइंट है। यानि भारत, चीन और भूटान तीनों की ही सीमाएं यहां मिलती हैं।
यही वजह है कि सारा इलाक़ा भारत के लिए सामरिक रूप से भी अहम है। अगर चीन डोकलाम में सड़क बना लेता, तो भारत की चिकन नेक ख़तरे में पड़ सकती है।
'चिकन नेक' उस 20 किलोमीटर चौड़े इलाक़े को कहते हैं जो दक्षिण में बांग्लादेश और उत्तर भूटान की सीमा के बीच है। यही जगह भारत को पूर्वोतर भारत से जोड़ता है।
साथ ही भारतीय सेना के जानकार मानते हैं कि डोकलाम के नज़दीक पड़ने वाला सिक्किम ही वो जगह है जहां से भारत चीन की कोशिशों पर किसी तरह का हमला कर सकता है।
सीमा पर हिमालय में यही एकमात्र ऐसी जगह है जिसे भौगोलिक तौर पर भारतीय सेना अच्छे-से समझती है और इसका सामरिक फ़ायदा ले सकती है। भारतीय सेना को यहां ऊंचाई का फ़ायदा मिलेगा जबकि चीनी सेना भारत और भूटान के बीच फँसी होगी।
तवांग
अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाक़े पर चीन की निगाहें हमेशा से रही हैं। वो तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है और कहता है कि तवांग और तिब्बत में काफ़ी ज़्यादा सांस्कृतिक समानता है।
तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल भी है। इसलिए कहा जाता है कि चीन तवांग को अपने साथ लेकर तिब्बत की तरह ही प्रमुख बौद्ध स्थलों पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है। दलाई लामा ने जब तवांग के बौद्ध मठ का दौरा किया था तब भी चीन ने इसका काफ़ी विरोध किया था।
नाथूला
नाथूला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के सिक्किम राज्य और दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है। भारत की ओर से यह दर्रा सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तक़रीबन 54 किलोमीटर पूर्व में है।
14,200 फ़ीट ऊंचाई पर स्थित नाथूला भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से होकर चीनी तिब्बत क्षेत्र में स्थित कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के लिए भारतीयों का जत्था गुज़रता है।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बंद कर दिए जाने पर, साल 2006 में कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के बाद नाथूला को खोला गया। क्योंकि 1890 की संधि के तहत भारत और चीन के बीच नाथूला सीमा पर कोई विवाद नहीं है। लेकिन साल 2020 के मई महीने में ख़बर आई थी कि नाथूला दर्रे के पास भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई थी।
सीमा विवाद सुलझाने की कोशिशें
भारत-चीन मामलों पर नज़र रखने वाली गीता कोचर बताती हैं कि दोनों देशों ने बॉर्डर मैनेजमेंट समितियां बनाई हुई हैं।
"इन कमेटियों का काम ये देखना है कि जबतक सीमा-निर्धारण का काम नहीं हो जाता, तबतक जो भी सीमा विवाद के मसले आएंगे, उन्हें बड़े तनाव में बदलने से रोकना है ताकि युद्ध की स्थिति ना बने।"
वहीं पीआईबी के मुताबिक़, भारत और चीन ने सीमा समस्या के समाधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए अपना-अपना विशेष प्रतिनिधि (एसआर) नियुक्त किया है। इन एसआर की कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं।
भारत-चीन सीमा विवाद के लिए विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 22 वीं बैठक 21 दिसंबर 2019 को नई दिल्ली में हुई थी। जिसमें भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने किया था।