अनघा पाठक, बीबीसी मराठी संवाददाता
महाराष्ट्र के नासिक में किसान नामदेव ठाकरे बता रहे थे, "बच्चा अगर आइसक्रीम मांगे तो हम नहीं ख़रीद सकते क्योंकि 10 रुपये की आइसक्रीम पांच किलो प्याज़ की क़ीमत के बराबर होती है, हम इतना ख़र्च नहीं कर सकते।"
नामदेव का परिवार नासिक जिले के चंदवाड़ तालुका में एक छोटे से गांव उरधुल में रहता है। सुबह सुबह हम जब इनके पास पहुंचे तो आसपास के सारे किसान जमा हो गए और सबकी एक ही चिंता थी कि प्याज़ का कोई भाव नहीं मिल रहा है। गांव में चारों तरफ़ प्याज़ के सूखे खेत दिखाई दे रहे थे।
यहां अधिकांश छोटे किसान हैं और उनके लिए एक सीज़न के प्याज़ की उपज बहुत अहम है। फसल की अच्छी क़ीमत मिलने पर उनके हाथ में कुछ पैसा आता है और क़ीमत न मिले तो मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
नासिक ज़िले के इस हिस्से में कम वर्षा होती है। यहां सिंचाई की ज़्यादा सुविधा नहीं है, इसलिए इलाके के किसानों की निर्भरता प्याज़ पर ज़्यादा है।
उरधुल गांव में किसानों से बात करने के दौरान आसपास के प्याज़ के खेतों में जानवर चरते नज़र आए। नामदेव ठाकरे ने कहा, "मैं अपने खेत से प्याज़ चुनने की मजदूरी देने की स्थिति में भी नहीं हूं। हम मज़दूरों से कहते हैं कि खेत से प्याज़ हटा दो और बदले में आधा रख लो तो भी वे मना कर देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि बाज़ार में प्याज़ का कोई भाव नहीं है। हम लोगों ने खेतों में प्याज़ को छोड़ दिया है और उस पर हल चला रहे हैं।"
पिछले दो-तीन सप्ताह से राज्य में प्याज़ का मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है। सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है लेकिन इन किसानों की मुश्किलों का कोई हल नहीं दिख रहा है।
किसानों के सामने हैं कई संकट
नासिक में प्याज़ की फसल में ट्रैक्टर चलाते किसान का वीडियो आपने देखा होगा, 512 किलोग्राम बेचने वाले किसान को दो रुपए का चेक मिला, ये ख़बर भी वायरल हुई।
वहीं किसी दूसरे किसान ने प्याज़ की फसल को जलाकर होली मनाई। इन किसानों की स्थिति को देखने के बाद बीबीसी मराठी ने यह पता लगाने की कोशिश की कि वास्तविकता में ये संकट कितना बड़ा है।
इलाके़ के एक दूसरे किसान भाऊसाहब खुटे ने बताया, "प्याज़ की खेती में मैंने 80 हज़ार रुपये ख़र्च किए थे। इसमें प्याज़ को बाज़ार ले जाने की लागत शामिल नहीं है जो अमूमन 300 रुपये प्रति क्विंटल है। मेरा आधा ख़र्च भी नहीं निकल रहा है। पैसा कमाना तो दूर घर से ही पैसे लगाने पड़े हैं। प्याज़ के खेत में जानवर रहेंगे तो कम से कम उनका चारा तो हो जाएगा।"
दागू खुटे का तो पूरे साल का हिसाब गड़बड़ा गया है। दुख में डूबे दागू खुटे कहते हैं, "मैंने उधार के पैसे लगाए थे। प्याज़ बेच कर बेटी की शादी करना चाहता था, घर बनाना चाहता था। सब लटक गया है।"
दागू खुटे के कच्चे घर के सामने उनका प्याज़ का खेत है, जो अब सूख चुका है। वे अब मानसून से पहले इस खेत को जोतकर नई फसल लगाएंगे।
उधार चुकाने की चिंता
लेकिन उनके सामने दूसरी चिंताएं भी हैं। वो कहते हैं, "पैसा नहीं आया। जिनसे उधार लिया था वो पैसे मांगने आएंगे। बीज और खाद वाले पैसे मांगेंगे। उन्हें क्या कहेंगे, हाथ में कुछ नहीं है, पैसे कहां से आएंगे? ये चिंता खाए जा रही है?"
घर का ख़र्च चलाने के लिए वो क्या करेंगे, इसके बारे में पूछने पर दागू खुटे कहते हैं, "मेरे पास अपना खेत है और अब मुझे किसी और के खेत में काम करने जाना होगा।"
सरकार का कहना है कि वो प्याज़ के किसानों को राहत देने के लिए क़दम उठा रही है। सरकार के दावे के मुताबिक़ भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ यानी नेफेड अब जल्दी ख़राब होने वाले लाल प्याज़ की भी ख़रीद कर रहा है।
सरकार के दावे और किसानों की शिकायत
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 28 फरवरी को विधान परिषद में कहा, "2017-18 में जब ऐसी स्थिति पैदा हुई थी, तब राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने किसानों को अतिरिक्त मदद दी थी और अब राज्य सरकार और केंद्र सरकार प्याज़ किसानों को अतिरिक्त मदद देने के लिए एक साथ आने को तैयार हैं।"
वहीं नासिक के किसान वसंत खुटे कहते हैं, "पैसा कहां से आया? नेफेड प्याज़ नहीं ख़रीद रहा है। टीवी पर ख़बर आती है कि अब प्याज़ 900 रुपये क्विंटल हो गया है लेकिन देखिए, मेरे पास चार मार्च की रसीदें हैं। देखिए, प्याज़ का भाव 300 रुपये क्विंटल ही है।"
नासिक शहर से 60-65 किमी दूर प्याज़ किसानों के एक गांव की ये स्थिति है। लेकिन दूसरी ओर शहरों में अभी भी प्याज़ 20 से 30 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
नासिक के एक बूढ़े किसान ने कहा, "वो कहते हैं कि प्याज़ का उत्पादन बहुत अधिक होने के कारण प्याज़ की कीमत कम हो गई है, फिर प्याज़ से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां रोज़ाना मार्केट कमेटी के बाहर आ जाती हैं। जो प्याज़ ख़रीदा जा रहा है वो कहां ग़ायब हो जाता है? प्याज़ रोज़ आता है। रोज़ ग़ायब हो जाता है। जब भाव 50 रुपये होगा तो क्या यही प्याज़ गोदाम से निकलेगा?"
इन किसानों की एक और शिकायत है कि सरकार किसानों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है। भाऊसाहब खुटे कहते हैं, "हम पर ध्यान देने के लिए उनके पास समय कहां है? उनका सारा समय केवल अपने ही नेताओं और ख़ास लोगों की देखभाल करने और दूसरी पार्टी के नेताओं से लड़ने में बीतता है।"
सूनी है मंडिया
गांव के किसानों के हाथ में पैसा नहीं है तो मंडियां भी सूनी हो गई हैं। कुछ दिनों में शादियां शुरू हो जाएंगी लेकिन कहीं कोई चहल पहल नहीं दिखती है।
किसी की बेटी की शादी रुक गई है। किसी का घर बनना है। किसी को कुआं बनवाना है। किसी को अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजना था लेकिन अब पैसा हाथ में नहीं आने से सब कुछ अधर में लटका हुआ है।
नामदेव ठाकरे कहते हैं, "अगर हमारे बच्चे 300 रुपये के जूते मांगते हैं, तो हम उन्हें चप्पल जूते नहीं दे सकते। जेब में कुछ नहीं होगा तो देंगे कहां से? अगर कोई आइसक्रीम वाला सड़क पर चला जाए और बेटा कहे कि आइसक्रीम दिला दो तो हम नहीं ले सकते। अगर प्याज़ की क़ीमत दो रुपये प्रति किलो है और आइसक्रीम की क़ीमत 10 रुपये है।"
मुश्किलों का सामना कर रहे इन किसानों को सरकार से मदद की कोई उम्मीद नहीं है। इनकी एक ही मांग है कि इन्हें फसल का उचित मूल्य मिले। लेकिन उन्हें नहीं लगता कि यह उम्मीद पूरी होने वाली है।