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Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 20 जनवरी 2020 (15:01 IST)

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 : किस चेहरे का कितना जादू चलेगा

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 : किस चेहरे का कितना जादू चलेगा - Delhi Assembly Elections 2020 Aam Aadmi Party Arvind Kejriwal
वात्सल्य राय
 
चुनाव की दहलीज़ पर खड़ी दिल्ली को लेकर एक सवाल चर्चा में है- क्या कोई चेहरा इस बार चुनाव की चाल बदल सकता है?
 
ये वो सवाल है, जो अब आए दिन ट्विटर ट्रेंड में दिख रहा है और दोबारा सरकार बनाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी को खूब रास आ रहा है। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में ताल ठोक रही पार्टी का दावा है कि भाजपा और कांग्रेस के पास मौजूदा मुख्यमंत्री के मुक़ाबले कोई चेहरा नहीं है।
 
आम आदमी पार्टी के नेता और तिमारपुर सीट से उम्मीदवार दिलीप पांडेय कहते हैं- "ये आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा एडवांटेज है। भारतीय जनता पार्टी के पास दिल्ली में न मुद्दे शेष हैं और न ही नेतृत्व बचा है।"
 
दिल्ली की राजनीति पर नज़र रखने वाले विश्लेषक इस सवाल का जवाब आंकड़ों के आधार पर देते हैं। मौजूदा सदी यानी साल 2000 के बाद दिल्ली में हुए विधानसभा के चार चुनावों में से तीन में जीत का सेहरा चुनाव में अगुवाई करने वाले नेताओं के सिर पर सजा।
 
साल 2003 और 2008 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित की 'विकासपरक' छवि के सहारे 47 और 43 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर पानी फेर दिया। इस नतीजे के दम पर शीला दीक्षित ने दिल्ली में तीन बार मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया और पार्टी के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार होने लगीं।
 
वहीं, साल 2015 में किरण बेदी पर भारी पड़े केजरीवाल ने पूरे ज़ोर पर दिखती नरेंद्र मोदी की चुनावी लहर को दिल्ली विधानसभा में दाखिल नहीं होने दिया। आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटें जीतने में कामयाब रही। 49 दिन की सरकार से इस्तीफ़ा देने के बाद सियासी वनवास की तरफ़ बढ़ गए केजरीवाल ने 2015 की जीत से भारतीय राजनीतिक पटल पर ज़ोरदार वापसी की।
 
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुने गए तीन विधायकों में से एक विजेंदर गुप्ता इन आंकड़ों को ज़्यादा महत्व नहीं देते हैं। गुप्ता का दावा है कि चुनाव के पहले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं करना पार्टी की रणनीति है।
 
वो कहते हैं कि हर पार्टी का एक चुनावी समीकरण और रणनीति होती है। पार्टी जो भी कर रही है, सोच समझकर कर रही है।"
 
लेकिन, ये रणनीति कई विश्लेषकों को भारतीय जनता पार्टी की कमज़ोर कड़ी दिखती है। दिल्ली की राजनीति पर क़रीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं कि चेहरे का 'महत्व तो होता ही है और कोई चेहरा है तो उसे सामने लाया जाना चाहिए। जैसे किसी वक़्त कांग्रेस के पास शीला दीक्षित का चेहरा था। तब उनकी छवि बदलाव और विकास से जुड़ गई थी।'
 
प्रमोद जोशी की राय में ऐसे फ़ैसले वोटरों की सोच को भी प्रभावित करते हैं। वो कहते हैं, "दिल्ली का वोटर किसी के पीछे चलने वाला नहीं है। वो चीज़ों को देखता रहता है और समय पर फ़ैसले लेता है।"
 
क्या कहा था अमित शाह ने : चेहरे की अहमियत भाजपा को भी खूब समझ आती है। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे ने पार्टी को विरोधियों पर निर्णायक बढ़त दिलाई।
 
इतना ही नहीं महाराष्ट्र में दशकों पुरानी सहयोगी शिवसेना के साथ गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, "ये मैंडेट (महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजे) देवेंद्र फडणवीस और नरेंद्र मोदी के नाम पर आया था। शिवसेना का एक भी प्रत्याशी, इनक्लूडिंग आदित्य ठाकरे, ऐसा नहीं था जिसने मोदी जी का कटआउट शिवसेना के सारे नेताओं से बड़ा नहीं लगाया था।"
 
शाह दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी को मात देने के लिए 'मोदी मैजिक' पर भरोसा कर रहे हैं। जनवरी के शुरुआती हफ़्ते में दिल्ली की एक रैली में उन्होंने कहा, "जहां पर भी मैं जाता हूं, वहां पूछते हैं, दिल्ली में क्या होगा? मैं आज आप सबके सामने जवाब दे देता हूं दिल्ली में नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने वाली है।"
 
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में करारी हार झेलने वाली भाजपा के प्रमुख ने अपने दावे के समर्थन में तर्क भी दिया। अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल की चुनौती को ख़ारिज करते हुए कहा कि झांसा कोई किसी को कोई एक ही बार दे सकता है। बार-बार नहीं दे सकता।
 
दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आप पार्टी (आम आदमी पार्टी) का सूपड़ा साफ़ हो गया। 2019 के चुनावों में दिल्ली के 13750 बूथों में से 12064 बूथ पर भारतीय जनता पार्टी का झंडा फहराने का काम मेरे कार्यकर्ताओं ने किया। 88 प्रतिशत बूथों पर भाजपा ने विजय प्राप्त की है।
 
शाह का आकलन है कि बूथ कार्यकर्ताओं की मेहनत और मोदी का चेहरा साल 1998 से दिल्ली विधानसभा में बहुमत हासिल करने को तरस रही पार्टी की कसक मिटा सकता है।
 
विजेंदर गुप्ता भी ऐसा ही दावा करते हैं। वो कहते हैं कि लोगों को समझ आ गया है। दिल्ली के विकास को तेज़ गति बीजेपी दे सकती है। मोदी जी दिल्ली में विकास करना चाहते हैं। केजरीवाल सिर्फ़ दिल्ली को पीछे ले जाने का काम कर रहे हैं।
 
वो आगे कहते हैं, "दिल्ली में पीने का पानी साफ नहीं है। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, दिल्ली में प्रदूषण इतना है। पांच साल में सरकार ने इन दोनों मुद्दों पर कोई काम नहीं किया। हम दिल्ली में साफ पानी देंगे। साफ हवा दिल्ली की हो इसकी व्यवस्था देंगे। यूनिफ़ाइड ट्रांसपोर्ट सिस्टम लास्ट माइल कनेक्टिविटी के साथ देंगे।"
 
दिल्ली के लोगों को मोदी के प्लान पर भरोसा है, ये दावा करते हुए वो कहते हैं, "जिस तरह से मोदी जी 1731 कॉलोनियों को मालिकाना हक़ दिया है, ये कोई साधारण बात नहीं है।" भाजपा नेताओं के दावों को लेकर प्रमोद जोशी कई सवाल खड़े करते हैं।
 
वो कहते हैं, "नगर पालिका या नगर निगम के चुनाव अलग होते हैं। दिल्ली में राज्य के रूप में सफल होना है तो अलग रणनीति होनी चाहिए। पिछले कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी किसी स्थानीय नेता को आगे नहीं कर पाई है। हो सकता है कि मनोज तिवारी कुछ इलाक़ों में बहुत लोगों को प्रभावित करते हों लेकिन उनके मुक़ाबले केजरीवाल आगे नज़र आते हैं।
 
वो ये भी याद दिलाते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर आने के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया।
 
केजरीवाल और मोदी : दिल्ली में केजरीवाल और मोदी के बीच मुक़ाबले के सवाल पर प्रमोद जोशी याद दिलाते हैं, "2019 के चुनाव परिणाम आ गए थे तब आम आदमी पार्टी ने ये कहा था कि दिल्ली में अगला चुनाव इस आधार पर होगा कि केंद्र में बीजेपी की सरकार और राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है।"
 
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में दूसरे नंबर पर वोट हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता जेपी अग्रवाल की भी राय है कि विधानसभा चुनाव में मोदी के सहारे बीजेपी को बढ़त हासिल नहीं होगी।
 
वो कहते हैं, "मोदी को आगे करने का मतलब ये है कि केंद्र की सरकार के मुद्दों पर वो दिल्ली का चुनाव लड़ेंगे। मोदी दिल्ली में मुख्यमंत्री बनने वाले नहीं हैं। वो दिल्ली के तीन चार जो नेता हैं, उनका नाम लेते हैं। उन्होंने मनोज तिवारी, विजय गोयल, विजेंद्र गुप्ता किसी के लिए नहीं कहा।"
 
अग्रवाल ये भी नहीं मानते हैं कि केजरीवाल का नाम ऐसा करिश्मा है कि चुनाव की तस्वीर बदल जाए। वो कहते हैं, "मेरा अनुभव ये कहता है कि मुद्दे ज़्यादा ज़रूरी होते हैं। लोग ये देखते हैं कि हक़ीकत में किसने क्या किया है। जहां हमने दिल्ली छोड़ी थी 2013 में उसका दस परसेंट भी विकास नहीं हुआ।"
 
लेकिन, आम आदमी पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के तमाम आरोपों को ख़ारिज कर रही है। दिलीप पांडेय कहते हैं, "पहली बार ऐसा हो रहा है कि काम पर चुनाव पर लड़ा जा रहा है। एक मुख्यमंत्री आकर कहता है कि हमने आपके लिए काम किया हो तो वोट देना, नहीं तो मत देना।
 
दिल्ली सरकार ने घोषणा पत्र में लिखे सारे काम किए, वो काम भी किए जो घोषणा पत्र में नहीं लिखे थे। 200 यूनिट बिजली फ्री कर देंगे हमने ये घोषणा पत्र में नहीं लिखा था। महिलाओं की बस यात्रा फ्री कर देंगे हमने घोषणा पत्र में नहीं लिखा था।"
 
चेहरे और काम दोनों को अहम बताते हुए वो कहते हैं, "दिल्ली वाले बड़े समझदार हैं। उनके लिए मैसेज भी महत्वपूर्ण है और मैसेंजर भी। चेहरे की जो विश्वसनीयता है, जब उस चेहरे ने डिलीवर कर दिया, तब उस चेहरे की विश्वसनीयता और बढ़ गई है।"
 
प्रमोद जोशी का भी आकलन है कि दिल्ली के दंगल में मौजूद महारथियों के बीच केजरीवाल अपना कद बढ़ाने में क़ामयाब रहे हैं। वो कहते हैं, "लीडर के नाते केजरीवाल की जो नकारात्मकता थी, उन्होंने बीते छह महीने से चुप्पी साधकर अपनी स्थिति को बेहतर किया है।"
 
साथ ही वो ये भी जोड़ देते हैं कि भारत में चुनाव के बारे में एक मुश्किल बात ये है कि कई बार अंतिम क्षण में ऐसा कुछ न कुछ हो जाता है कि चुनाव की धारा बदल जाती है।
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