चन्द्रमा मन का अधिष्ठाता है। मन की कल्पनाशीलता चन्द्रमा की स्थिति से प्रभावित होती है। ब्रह्मांड में जितने भी ग्रह हैं, उन सभी का व्यक्ति के जीवन पर विशेष और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। मानव ने जब से काल के चिंतन का आरंभ किया, उसी समय से चन्द्रमा उसके लिए अपने घटने-बढ़ने की प्रक्रिया के कारण प्रकृति का अखंड और निर्विवाद पंचांग रहा है। संसार के सभी धर्मों के धर्मग्रंथों में प्रत्येक काल में चन्द्रमा की तिथियों के अनुसार ही धार्मिक विधि रचने का उल्लेख पाया जाता है।
व्यक्ति के चरित्र के सूक्ष्म रूप, विशिष्ट गुण, उसकी प्रतिभा, भावनाओं, प्रवृत्तियों, योग्यताओं तथा भावनात्मक प्रवृत्ति आदि का ज्ञान जन्मकाल के ग्रहों की स्थिति से मालूम हो जाता है।
समुद्र में उत्पन्न होने वाले ज्वार-भाटे का मूल कारण चन्द्रमा की स्थिति है। पूर्णिमा का प्रभाव पशु-पक्षियों और रेंगने वाले कीड़ों पर ही नहीं पड़ता, बल्कि उन्मादग्रस्त मनुष्यों पर भी पड़ता है। वे सभी अन्य दिनों की अपेक्षा पूर्णिमा के दिन ही अधिक उत्तेजित और अव्यवस्थित दिखाई देते हैं। संसार के जितने की ऊष्ण प्रदेश हैं, वहां को लोगों को पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी में सोने पर विचित्र स्वप्न दिखाई देते हैं। इस प्रकार के विचित्र स्वप्न अन्य किसी दिन में दिखाई नहीं देते। यही नहीं, स्त्रियों के मासिक धर्म और चंद्रमा के 28 दिवस चक्र के बीच सीधा संबंध है।
चंद्रमा के घटने-बढ़ने का व्यक्ति के मस्तिष्क के साथ परंपरागत संबंध होता है। शुक्ल पक्ष में मनुष्य का मस्तिष्क जागरूक होता है। इन दिनों उसे नींद भी अच्छी आती है। हम अपने जीवन में चंद्रमा के प्रभाव का स्पष्ट अनुभव करते हैं। चंद्रमा का सृष्टि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। संपूर्ण प्रकृति, भले ही वह जड़ हो या चेतन, उसमें धड़कन होती है, स्पंदन होता है और वह नित्य परिवर्तनशील है।
चन्द्रमा का अपनी तिथियों के अनुसार विश्व के जड़ और चेतन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जो मछुआरे नाव लेकर मछलियां पकड़ने जाते हैं, वे चंद्रमा के इस प्रभाव से भलीभांति परिचित होते हैं।
चन्द्रमा मन का अधिष्ठाता है। मन की कल्पनाशीलता चन्द्रमा की स्थिति से प्रभावित होती है। स्त्रियों में स्थित कामभावना चंद्रमा की कलाओं के उपचय-अपचय के अनुसार विभिन्न अंगों में तिथिक्रम से केंद्रित रहा करती है। कामशास्त्र इस संबंध में सलाह देता है कि तिथि के अनुसार स्त्री के संबंधित अंग को सहलाने से वह जल्दी उत्तेजित हो जाती है।
चंद्रमा सुख स्थान का और माता का कारक होता है। यह मन की संकल्प-विकल्पमूलक कल्पनाशक्ति का परिचायक होता है। शारीरिक स्थिति में यह जल ग्रह होने के कारण न्यूमोनिया तथा कफजनित रोग सर्दी-जुकाम आदि का सूचक रहता है। जन्म कुंडली में जिन पर चंद्रमा निर्बल रहता है, वे प्राय: शीतजनित रोगों से पीड़ित रहते हैं। रक्त प्रवाह और हृदय इसके अधिकृत क्षेत्र हैं, किंतु अन्य ग्रह के साथ अशुभ युति करने पर ही यह रक्तचाप, हृदय रोग आदि दिया करता है।
चंद्रमा द्विस्वभाव रहता है अर्थात अकेला ही यह पाप और शुभ बन जाता है। शुक्ल पक्ष की दशमी से कृष्ण पक्ष की पंचमी तक पूर्ण प्रकाशमान रहने के कारण यह बली रहता है। यह पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है। चंद्रमा कर्क राशि में उच्च का एवं वृश्चिक राशि में नीच का माना जाता है। चंद्रमा उच्च राशि का होने पर मिष्ठान्न भोजी और अलंकार प्रिय बनाता है तथा इनके प्राप्त होने के योग भी बनाता है। मूल त्रिकोणी होने पर यह धनी और सुखी भी करता है। चंद्रमा नीच राशिगत होने पर धर्म, बुद्धि का ह्रास करता है तथा दुरात्मा व दुखी बनाता है। शुक्र ग्रही होने पर यह माता के स्नेह और सुख से वंचित करता है।
-पं. कमलेश शर्मा, भोपाल