• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सनातन धर्म
  3. नीति नियम
  4. rules of hindu worship
Written By
Last Updated : शनिवार, 8 जुलाई 2017 (12:38 IST)

पूजा से पहले नहीं किया यह काम तो लगेगा पाप और पछताएंगे आप

पूजा से पहले नहीं किया यह काम तो लगेगा पाप और पछताएंगे आप | rules of hindu worship
यदि आप प्रतिदिन घर या मंदिर में पूजा या प्रार्थना करते हैं तो आपको कुछ नियम भी पालने चाहिए। नियम है तो धर्म है और धर्म है तो ही जीवन है। अत: नियम से ही कोई कार्य करें तो उचित है। तो आओ जानते हैं कि पूजा से पहले ऐसा कौन सा कार्य है जो हमें करना जरूरी है।
 
एक समय था जब लोग संध्यावंदन करते थे लेकिन वक्त बदला और लोगों ने पूजा करना शुरू कर दिया। संध्यावंदन का महत्व पीछे खो गया और लोग अपनी भावनाओं को पूजा एवं आरती में व्यक्त करने लगे। संध्यावंद संधिकाल में किया जाता था। आठ समय की संधि में से दो समय की संधि अर्थात प्रात:काल और संध्याकाल की संधि बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी लेकिन अब इस समय संध्यावंदन को छोड़कर लोग पूजा और आरती करते हैं। हालांकि इसे करने में भी कोई बुराई नहीं है।
 
वेदज्ञ और ईश्‍वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्‍यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं। पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ की संध्योपासना या हिन्दू प्रार्थना के चार प्रकार हो गए हैं- 1.प्रार्थना-स्तुति, 2.ध्यान-साधना, 3.कीर्तन-भजन और 4.पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है। लेकिन ऐसा या वैसा करने के पहले कुछ जरूरी नियम जान लेना भी जरूरी है।
 
अलगे पन्ने पर पहला नियम...

शौच : शौच अर्थात शुचिता, शुद्धता, शुद्धि, विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता। शौच का अर्थ शरीर और मन की बाहरी और आंतरिक पवित्रता से है। शौच का अर्थ है अच्छे से मल-मूत्र त्यागना भी है।

शौच के दो प्रकार हैं- बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य का अर्थ बाहरी शुद्धि से है और आभ्यन्तर का अर्थ आंतरिक अर्थात मन वचन और कर्म की शुद्धि से है। जब व्यक्ति शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहता है तब उसे स्वास्थ्‍य और सकारात्मक ऊर्जा और देवताओं के आशीर्वाद का लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
 
अगले पन्ने पर दूसरा नियम...
 

स्नान : शारीरिक शुद्धता भी दो प्रकार की होती है- पहली में शरीर को बाहर से शुद्ध किया जाता है। इसमें मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान करने से त्वचा एवं अंगों की शुद्धि होती है। 

दूसरी शरीर के अंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए योग में कई उपाय बताए गए है- जैसे शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, कुंजल, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि।
 
उपरोक्त तरीके से नहीं स्नान करना चाहते हैं तो सामान्य तरीके से स्नान करते वक्त आप अपने सभी 10 छिद्रों को अच्छे से साफ करें। 10 छिद्रों में 2 आंखें, नाक के 2 छिद्र, कान के 2 छिद्र, मुख, नाभि और गुप्तांग के मिलाकर कुल 10 छिद्र होते हैं। 
 
अगले पन्ने पर तीसरा नियम...
 

धोती : आप कुछ भी करें, संध्यावंदन करें, पूजा या आरती करें लेकिन शरीर पर मात्र एक बगैर सिला सफेद कपड़ा ही धारण करके यह कार्य संपन्न करें, क्योंकि यही प्राचीनकाल से चला आ रहा नियम है। हिंदू धर्म में किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना के वक्त श्रद्धालुओं को धोती पहनना अनिवार्य किया गया है। प्राचीनकाल में धोती पहने बिना पूजादि कर्मकांड पूर्ण नहीं माने जाते थे। 
धोती बारिक सूती कपड़े से बनी होती है जो हवादार और सुविधाजनक होती है। धोती के कारण शरीर के रोमछिद्रों से हमें शुद्ध प्राणवायु मिलती है। इसे पहने के बाद सात्विक और निर्मल भाव उत्पन्न होता है। अत: धोती पहनकर ही पूजा अर्चना करें।

प्रचलन में है कि यदि आप पूजा नहीं सिर्फ दर्शन करने और मन्नत मांगने जा रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि धोती पहनकर ही जाएं।
 
अगले पन्ने पर चौथा नियम..
 

शुद्धि और आचमन : मंदिर में प्रवेश के पूर्व पुन: एक बार शरीर की शुद्धि की जाती है। शौचादि से निवृत्ति होने के बाद पूजा, प्रार्थना के पूर्व आचमन किया जाता है। मंदिर में जाकर भी सबसे पहले आचमन किया जाता है। संध्या वंदन के आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।

बहुत से लोग मंदिर में शौच या शुद्धि किए बगैर चले जाते हैं जो कि अनुचित है। प्रात्येक मंदिर के बाहर या प्रांगण में नल जल की उचित व्यवस्था होनी चाहिए जहां व्यक्ति बैठकर अच्छे से खुद को शुद्ध कर सके। जल का उचित स्थान नहीं है तो यह मंदिर दोष में गिना जाएगा। 
 
शुद्धि के बाद आचमन करने का विधान है। आचमन का अर्थ होता है जल पीना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है। आचमनी का अर्थ एक छोटा तांबे का लोटा और तांबे की चम्मच को आचमनी कहते हैं। छोटे से तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तुलसी डालकर हमेशा पूजा स्थल पर रखा जाता है या साथ ले जाया जाता है। यह जल आचमन का जल कहलाता है। इस जल को तीन बार ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है। प्रत्येक हिंदू को मंदिर जाने वक्त धोती पहनकर, हाथ में आचमनी लेकर मंदिर जाना चाहिए। 
 
मनुस्मृति में कहा गया है कि- नींद से जागने के बाद, भूख लगने पर, भोजन करने के बाद, छींक आने पर, असत्य भाषण होने पर, पानी पीने के बाद, और अध्ययन करने के बाद आचमन जरूर करें।
ये भी पढ़ें
Muhurat in November 2020 : नवंबर माह में कब खरीदें वाहन, जानिए शुभ मुहूर्त