Agahan Month 2022 : शनिवार, 12 नवंबर 2022 को मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जाएगा। इसे गणाधिप चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती हैं। अगहन मास की इस चतुर्थी का बहुत धार्मिक महत्व पुराणों में बताया गया है। आइए जानते हैं इस व्रत के संबंध में- Sankashti Ganesh Chaturthi
महत्व- इस व्रत के पौराणिक महत्व के अनुसार एक बार पार्वती जी ने श्री गणेश से पूछा कि अगहन कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन किस गणेश की पूजा किस रीति से करनी चाहिए?
श्री गणेश ने उत्तर दिया कि, हे हिमालयनंदनी! अगहन में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद अर्घ्य देना चाहिए। अपने शत्रु को वशीभूत करने हेतु जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शाकला बनाकर हवन कराएं। दिन भर व्रत रखकर पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। तत्पश्चात यह प्राचीन कथा सुनें।
इस व्रत की महिमा बताते हुए श्री कृष्ण जी कहते हैं कि महाराज युधिष्ठर, आप भी इस व्रत को कीजिए। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षण भर में अपने शत्रुओं को जीतकर संपूर्ण राज्य के अधिकारी बनेंगे। भगवान श्री कृष्ण के वचन सुनकर युधिष्ठर ने श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने शत्रुओं को जीत कर राज्य के अधिकारी बन गए।
चतुर्थी पूजन के शुभ मुहूर्त-
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत : शनिवार, 12 नवंबर 2022
मार्गशीर्ष कृष्ण संकष्टी चतुर्थी तिथि का प्रारंभ- शुक्रवार, 11 नवंबर, 2022 को 08.17 पी एम से,
चतुर्थी तिथि का समापन- शनिवार, 12 नवंबर 2022 को 10.25 पी एम पर।
उदयातिथि के अनुसार चतुर्थी व्रत 12 नवंबर 2022 को रखा जाएगा।
संकष्टी चतुर्थी चंद्रोदय का समय- 08.21 पी एम
दिन का चौघड़िया
शुभ- 08.02 ए एम से 09.23 ए एम
चर- 12.05 पी एम से 01.26 पी एम
लाभ- 01.26 पी एम से 02.47 पी एमवार वेला
अमृत- 02.47 पी एम से 04.08 पी एम
रात का चौघड़िया
लाभ- उन्नति
05.29 पी एम से 07.08 पी एम
शुभ- 08.47 पी एम से 10.26 पी एम
अमृत- 10.26 पी एम से 13 नवंबर को 12.05 ए एम तक।
चर- 12.05 ए एम से 13 नवंबर को 01.45 ए एम तक।
लाभ- 05.03 ए एम से 13 नवंबर को 06.42 ए एम तक।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Margashirsha Chaturthi Katha) :
प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे। वे राजा आखेट प्रिय थे। एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का आखेट में वध कर दिया। उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्रशोक में मर रहे हैं, उसी भांति तुम्हारा भी पुत्रशोक में मरण होगा।
इससे राजा को बहुत चिंता हुई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया। भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुई। पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए, जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षस व राक्षसियों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीता जी का अपहरण कर लिया।
सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव के साथ मैत्री की। तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। ढूंढते-ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा। इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आए हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहां पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ है।
संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन राम जी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं। वहां पर उनकी पत्नी सीता जी का अपरहण कर लिया गया है। हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां है?
उनकी बात सुनकर संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो। जानकी जी का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर है वह मुझे मालूम है। सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है। यहां से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है। वहां अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हुई है।
रावण द्वारा अपह्रत सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं। मैं आपसे सत्य कह रहा हूं कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है। अतः उन्हें वहां जाना चाहिए। केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र लांघ सकते हैं। अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं है।
संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं?
हनुमान जी की बात सुनकर संपाती ने उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी (lord ganesh) का व्रत कीजिए। उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लेंगे। संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया। हे देवी, इसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को लांघ गए। इस लोक में इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।