केंद्र का सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध, राजद्रोह कानून की वैधता के अध्ययन में समय नहीं लगाएं
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि वह राजद्रोह के दंडनीय कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए, क्योंकि उसने (केंद्र ने) इस प्रावधान पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है, जो सक्षम मंच के समक्ष ही हो सकता है।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने 5 मई को कहा था कि वह इस कानूनी प्रश्न पर दलीलों पर सुनवाई 10 मई को करेगी कि राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के दंडनीय कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदारनाथ सिंह मामले में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1962 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाए या नहीं?
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार सरकार ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के प्रावधानों का पुन: अध्ययन और पुनर्विचार करने का फैसला किया है, जो सक्षम मंच पर ही हो सकता है।
हलफनामे में कहा गया कि इसके मद्देनजर बहुत सम्मान के साथ यह बात कही जा रही है कि माननीय न्यायालय एक बार फिर भादंसं की धारा 124ए की वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए और एक उचित मंच पर भारत सरकार द्वारा की जाने वाली पुनर्विचार की प्रक्रिया की कृपया प्रतीक्षा की जाए, जहां संवैधानिक रूप से इस तरह के पुनर्विचार की अनुमति है।
गत शनिवार को दाखिल एक और लिखित दलील में केंद्र ने राजद्रोह कानून को और इसकी वैधता को बरकरार रखने के एक संविधान पीठ के 1962 के निर्णय का बचाव करते हुए कहा था कि ये प्रावधान करीब 6 दशक तक खरे उतरे हैं और इसके दुरुपयोग की घटनाओं का कभी पुनर्विचार के लिहाज से औचित्य नहीं माना जा सकता। उच्चतम न्यायालय राजद्रोह के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।