• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. मध्यप्रदेश
  4. 5 big reasons for BJP defeat in 7 municipal corporations in Madhya Pradesh
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 20 जुलाई 2022 (17:13 IST)

मध्यप्रदेश में 7 नगर निगम में महापौर चुनाव में भाजपा की हार के 5 बड़े कारण

मध्यप्रदेश में 7 नगर निगम में महापौर चुनाव में भाजपा की हार के 5 बड़े कारण - 5 big reasons for BJP defeat in 7 municipal corporations in Madhya Pradesh
भोपाल। मध्यप्रदेश में सात साल बाद हुए नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम काफी रोचक और चौंकाने वाले रहे। बुधवार को निकाय चुनाव के दूसरे चरण के चुनाव परिणामों में पांच नगर निगम में से भाजपा और कांग्रेस जहां 2-2 सीटों पर विजयी रहे वहीं कटनी नगर निगम में भाजपा की बागी उम्मीदवार ने जीत हासिल की है।

सात साल बाद हुए चुनाव को देखा जाए तो मध्यप्रदेश के कुल 16 नगर निगमों में से सत्तारूढ़ भाजपा केवल 9 नगर निगमों में जीत हासिल कर पाई वहीं पांच नगर निगम कांग्रेस के खाते में गए है। इसके साथ सिंगरौली नगर निगम पर आम आदमी पार्टी ने अपना कब्जा जमा लिया जबकि कटनी नगर निगम पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है।
 
2023 विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देखे गए महापौर चुनाव में भाजपा को 7 सीटों पर नुकसान झेलना पड़ा। अब तक भाजपा प्रदेश की सभी 16 नगर निगमों पर काबिज थी। ऐसे में विधानसभा चुनाव से ठीक डेढ़ साल पहले हुए निकाय चुनाव में सात सीटें हारना भाजपा के लिए एक तगड़ा झटका माना जा रहा है। अगर चुनाव परिणाम को देखा जाए तो प्रदेश के तीन बड़े अंचल ग्वालियर-चंबल, विंध्य और महाकौशल में भाजपा की बड़ी हार हुई है।
1-उम्मीदवार चयन में चूकी भाजपा-निकाय चुनाव के परिणाम सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। सात बड़े जिलों में महापौर चुनाव भाजपा के हराने का सबसे बड़ा कारण महापौर उम्मीदवारों के चयन में भाजपा की चूक होना है। कटनी में महापौर का चुनावी जीती निर्दलीय प्रत्याशी प्रीती सूरी भाजपा की कार्यकर्ता थी और चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बगावत कर चुनाव लड़ा था। भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ने पर पार्टी ने प्रीती सूरी को पार्टी से 6 सालों के निष्कासित भी कर दिया था। कटनी में भाजपा उम्मीदावर ज्योति दीक्षित की हार बताती है कि पार्टी ने कहीं न कहीं प्रत्याशी चयन में चूक कर दी। 
 
इसके साथ सिंगरौली में महापौर बनी आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार रानी अग्रवाल भी भाजपा की कार्यकर्ता थी और उन्होंने चुनावी वर्ष में भाजपा का साथ छोड़कर आम आदमी पार्टी ज्वाइन की थी। वहीं महाकौशल की सबसे प्रमुख जिला जबलपुर में भाजपा की हार का बड़ा कारण पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता की जगह डॉक्टर जितेंद्र जामदार को मैदान में उतराना रहा। जिसके चलते पार्टी का कोर कार्यकर्ता पार्टी से नाराज हो गया और भाजपा को अपने गढ़ में हार का सामना करना पड़ा। जबलुपर की तरह ग्वालियर में भी भाजपा की हार का बड़ा कारण पार्टी का उम्मीदवार चयन रहा। 

2-दिग्गजों के गढ़ में हारी भाजपा-निकाय चुनाव में भाजपा की हार का अगर विश्लेषण करें तो भाजपा दिग्गजों के गढ़ में महापौर चुनाव हार गई। मुरैना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का संसदीय क्षेत्र है और मुरैना नगर निगम चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर ने मुरैना में डेरा डाल दिया था लेकिन वह भाजपा को जीता नहीं पाए। वहीं ग्वालियर जिसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ के रूप में देखा जाता है वहां पर भी भाजपा की महापौर उम्मीदवार चुनाव हार गई। 

इसके साथ कटनी जो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के संसदीय क्षेत्र में आता है वहां भाजपा की उम्मीदवार को निर्दलीय प्रत्याशी ने हरा दिया। वहीं महाकौशल के दूसरे नगर निगम में जबलपुर में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह का संसदीय क्षेत्र होने के साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की ससुराल है लेकिन भाजपा को जबलपुर में हार का सामना करना पड़ा। 

3-भितरघात और अंदरूनी खींचतान- सात महापौर चुनाव भाजपा के हारने का बड़ा कारण भितरघात और पार्टी के नेताओं के बीच मची खींचतान है। दिग्ग्गज नेताओं की आपसी खींचतान से भाजपा चुनाव में भितरघात का शिकार हो गई। चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता जो बरसों से टिकट की आस लगाए बैठे थे उनको टिकट ना मिलने पर वह घरों से ही बाहर नहीं निकले जिसका असर चुनाव में दिखा और भाजपा को जबलपुर और ग्वालियर जैसे अपने गढ़ में हार का सामना करना पड़ा। 
 
4-पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन का खामियाजा-नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक खामियाजा पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन के दौर से उठाना पड़ा। चुनाव के दौरान अनुभवी और पुराने कार्यकर्ता घर बैठे गए जिसके कारण पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा। भाजपा ने 35 साल से कम उम्र के युवाओं को मंडल और वॉर्डों की जिम्मेदारी सौंपी थी। युवा मंडल अध्यक्षों ने वार्ड से लेकर बूथ तक अपनी अपनी नई टीम बना ली है। जिसमें पुरानी कार्यकर्ता बाहर कर दिए गए है। ऐसे में पार्टी को वह अनुभवी कार्यकर्ता जिनको दर्जनों चुनाव लड़वाने का अनुभव था वह अपने घर बैठ गए। मोहल्ले के रहने वाले बुजुर्ग पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार से भी दूरी भी बना ली और और उसका खामियाजा पार्टी के उम्मीदवारों को उठाना पड़ा।
 
5-AAP पार्टी का विकल्प के रूप में आना- मध्यप्रदेश में निकाय चुनाव के जरिए आम आदमी पार्टी ने अपनी जोरदरा एंट्री की है। सिंगरौली में आप की रानी अग्रवाल महापौर का चुनाव जीत गई तो ग्वालियर में भाजपा प्रत्याशी सुमन शर्मा की हार का बड़ा कारण आप उम्मीदवार रूचि गुप्ता को 45 हजार से अधिक वोट हासिल करना था। सियासी विश्लेषक मानते है कि मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी को मतदाता एक विकल्प के तौर पर देख रहा है। भाजपा जो करीब 16 साल से सत्ता में है और बीच में कांग्रेस के 15 महीने में कांग्रेस कार्यकाल को देखने के बाद अब लोग आम आदमी पार्टी को एक विकल्प के तौर पर दिख रही है।  
ये भी पढ़ें
हजार रुपए से भी कम में PTron ने लॉन्च किए दो स्टाइलिश Earbuds, मिलेगी 50 घंटे की बैटरी लाइफ