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                    [description] => बिहार विधानसभा चुनाव में सभी प्रत्याशी चुनाव  मैदान में जोर आजमाइश करने उतर गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सभी दलों के दिग्गज नेताओं का दौरा लगातार जारी है। कोई कोर वोटरों को साधने की कोशिश कर रहा तो कोई दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में है। यूं तो सभी पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशियों को पाक-साफ बता कर उन्हें विजयी बनाने की अपील कर रहीं, लेकिन किसी भी पार्टी के उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो यह साफ दिख रहा कि जातिवाद, परिवारवाद और दागियों से किसी भी राजनीतिक दल का मोहभंग नहीं हो रहा।
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                    [description] => बिहार विधानसभा चुनाव के बीच छठ महापर्व के मौके पर घर लौट रहे और फिर यहां से वापस जाने वाले लोगों की परेशानियों ने एक बार फिर पलायन का सच उजागर किया है। गुजरात का उधना रेलवे स्टेशन हो या देश के किसी भी हिस्से से बिहार आने वाली रेलगाड़ियों-बसों में जगह लेने के लिए लोगों की लंबी कतारें हों, इन्होंने एक बार फिर कोरोना काल की याद ताजा कर दी।
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शबनम फॉन हाइन अनुवाद: सोनम मिश्रा
दोनों पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष विराम वार्ता 6 नवंबर को तुर्की के इस्तांबुल में बातचीत हो रही है। पिछले महीने सीमा पर हुई तीखी झड़पों के बाद, पाकिस्तान और काबुल, दोनों तुर्की और की मध्यस्थता के बीच शांति समझौता करने की कोशिश कर रहे हैं।
 
9 अक्टूबर को काबुल में हुए विस्फोटों के लिए तालिबान ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। जिसके बाद दोनों देशों के बीच घातक सीमा संघर्ष शुरू हो गया। और तालिबान ने बताया कि पाकिस्तानी सेना शहर के अंदर और बाहर, कई ठिकानों पर बमबारी कर रही है। इस दौरान तुर्की और कतर ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर संघर्षविराम कराया। लेकिन तब तक इस संघर्ष में 70 से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
 
पिछले हफ्ते तुर्की ने घोषणा की कि प्रांत में शांति बनाए रखने के लिए और समझौते का उल्लंघन होने पर कार्रवाई करने के लिए एक निगरानी तंत्र भी स्थापित किया जाएगा।
 
वॉशिंगटन स्थित न्यू अमेरिका फाउंडेशन के विशेषज्ञ और 2004 से 2011 तक कनाडा और फ्रांस में अफगान राजदूत रहे ओमर समद ने डीडब्ल्यू से कहा, "कई तकनीकी सवाल अब भी सामने खड़े हैं।”
 
उन्होंने कहा, "संघर्षविराम का पालन कौन सुनिश्चित करेगा, कोई तीसरा देश या कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन? काबुल और इस्लामाबाद के बीच गहरा अविश्वास, पुराना सीमा विवाद और आतंकवाद की अलग-अलग परिभाषाएं इन वार्ताओं को और जटिल बनाती हैं।”
 
पाकिस्तानी तालिबान: एक बड़ी अड़चन
पाकिस्तान और अफगानिस्तान करीब 2,600 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। वह कभी एक-दूसरे के करीबी साथी माने जाते थे। लेकिन अब पिछले कुछ सालों में उनके रिश्ते काफी बिगड़ गए हैं। पाकिस्तान सरकार का आरोप है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार (टीटीपी) को शरण और मदद देती है। हालांकि, अफगान तालिबान इन आरोपों को नकारते आया है।
 
तालिबान ने 2021 में जब से अफगानिस्तान की सत्ता संभाली, तब से पाकिस्तान में हमलों और हिंसा की घटनाओं में काफी तेजी आई। जिसके बाद तालिबान शासन पर दबाव बढ़ाने के लिए, पाकिस्तान ने भी पिछले साल से अफगानिस्तान के पूर्वी हिस्से में टीटीपी के संदिग्ध ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए। तालिबान के अनुसार, दिसंबर 2024 के अंत में लड़ाकू विमानों और ड्रोन हमलों में कम से कम 46 लोग मारे गए। जिसमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।
 
अफगान राजनीतिक विश्लेषक, अहमद सईद ने चेतावनी दी, "अगर बातचीत नाकाम होती है, तो दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध भी छिड़ सकता है।” उन्होंने यह भी बताया कि टीटीपी ने अफगान तालिबान के प्रति निष्ठा की शपथ ली है और दोनों एक ही विचारधारा का पालन करते हैं। हालांकि, तालिबान शासन कहता आया है कि टीटीपी के लड़ाके पाकिस्तानी सरकार के विरोधी हैं और उनका हमसे कोई संबंध नहीं है।
 
नए सहयोगियों की तलाश में तालिबान शासन
अगस्त 2021 में, जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता अपने हाथ में ली, तो पाकिस्तान ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया। चूंकि, उसे उम्मीद थी कि तालिबान उसका एक करीबी सहयोगी बन सकता है। लेकिन यह गर्मजोशी ज्यादा दिन तक नहीं टिकी। सईद ने कहा, "तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि वह उस पर अपना असर बनाए रख सकता है।”
 
उन्होंने आगे कहा, "लेकिन तालिबान अपनी स्वतंत्र पहचान और दूसरे देशों, जैसे भारत से मान्यता पाने की कोशिश कर रहा है। इसलिए वह टीटीपी को यानी जिसने कभी अमेरिका और अफगान सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उसे आतंकवादी संगठन की मान्यता नहीं देना चाहता है।”
 
दो देशों की तनातनी में पिस रहे आम नागरिक
इन सब के बीच पाकिस्तान में रह रहे आम अफगान नागरिकों पर दबाव काफी बढ़ गया है। पुलिस अफगानों के कारोबार और किराए के मकानों पर लगातार छापेमारी कर रही है। और यह कार्रवाई सिर्फ सीमा के इलाकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इस्लामाबाद और दूसरे बड़े शहरों में भी हो रही है।
 
अपनी पहचान न बताने की शर्त पर एक अफगान नागरिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम छिपकर जी रहे हैं। इससे हमारा परिवार बिखर गया है। गिरफ्तारी और पुलिस हिंसा के डर से कोई एक जगह रुक ही नहीं पा रहा। हमारे काम बंद हो गए हैं, बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं और हमें समझ नहीं आ रहा कि अब आगे क्या करें।” कई अफगान नागरिकों को तो यह भी डर है कि उनके किराए के घरों के अनुबंध आगे नहीं बढ़ाए जाएंगे और वीजा प्रक्रिया में भी मुश्किलें आएंगी।
 
अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा पिछले दो हफ्तों से बंद है। अब यह सीमा केवल अफगान प्रवासियों को वापस भेजने के लिए खोली जा रही है। तालिबान अधिकारियों के मुताबिक, पिछले हफ्ते के अंत तक लगभग 8,000 अफगान नागरिकों को स्पिन बोलदक बॉर्डर के जरिए कंधार प्रांत भेजा गया है।
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