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[description] => यदि यह शर्त होती, कि लिखे अनुसार गाय को न सिर्फ माता मानना होगा वरन निबंध लिखने वाले विधार्थी को गाय को घास का गट्ठर भी खिलाना होगा, तो शायद देश में एक भी गाय दुबली या कमजोर नहीं होती। शिक्षा प्रणाली तथा इसके आधारभूत ढांचे में तेजी से हो रहे परिवर्तन के बावजूद अपेक्षाजनक परिणामों की प्राप्ति नहीं हो पाने का प्रमुख कारण विषयवस्तु में बदलाव नहीं किया जाना है।
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क्या वाकई बॉलीवुड के सुपर स्टार सलमान खान कभी बलात्कार के शिकार हुए हैं? क्या सच में कभी उन्हें रूह कंपा देने वाले वाकये का सामना करना पड़ा है? ये सवाल खुद सलमान खान ने खड़े किए हैं, जब उन्होंने बलात्कार पीड़ित महिला जैसी अपनी हालत के बारे में बताया। सवाल ये भी है कि क्या इस विवाद के पीछे केवल सलमान जिम्मेदार हैं, बॉलीवुड नहीं?
सलमान खान के इस बयान ने वर्ष 2009 में आई फिल्म ‘थ्री इडियट’ की याद दिला दी। फिल्म एक मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही जिसने लोगों को सिखाया कि ‘काबिल बनो, कामयाबी अपने आप तुम्हारे पीछे आएगी’।
फिल्म में कई अच्छी बातें कही गईं, लेकिन जब कार्यक्रम में रामालिंगम यानी चतुर की स्क्रिप्ट में बदलाव कर दिया गया तो उसके संवादों ने चौंका दिया। अक्षरों में फेरबदल कर चमत्कार को बलात्कार और धन को स्तन कर दिया गया। लोगों ने खूब ठहाके लगाए, रेंचो ने राजू को समझा दिया कि काबिलियत कितनी जरूरी है। लेकिन समझाने का ये क्या तरीका हुआ भला? इतने गंभीर शब्द का इतना हल्का इस्तेमाल?
सिनेमा हॉल में गूंजते ठहाके, हाथ पर हाथ मारती तालियां और बजती सीटियां कानों पर चुभ रही थीं मुझे। फूहड़ता पर इतने ठहाके। एक बार को ऐसा लगा मानो सिनेमा हॉल में नहीं मोहल्ले की किसी गली से गुजर रही हूं, जहां बैठे मनचले हर रोज नए जुमले लाते थे परेशान करने के लिए।
जब शरीर का कोई अंग दिख न जाए, इस चिंता से पूरा शरीर ढंके रहते थे। क्या धन और चमत्कार के लिए यही शब्द मिले थे डायरेक्टर को? बस में चढ़ते, उतरते, खड़े रहते वक्त जो तंज सुनते आ रहे हैं हम, क्या ये सब उससे अलग हैं? अगले पल मन में यही ख्याल आया लो मिल गए और अश्लील ताने शोहदों को।
मुझे आमिर खान की ही फिल्म ‘दिल’ का वो दृश्य भी याद आया, जहां नायिका माधुरी जब नायक आमिर पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाती है तो बलात्कार की तकलीफ का एहसास कराने के लिए नायक, नायिका से वैसा ही बर्ताव करता है, जैसा कोई बलात्कारी करता है ताकि बलात्कार जैसी दुर्घटना से गुजरने वाली लड़की की टीस और दर्द का एहसास हो सके। हैरानी हुई मुझे कि फिर मिस्टर परफेक्शनिस्ट ने ‘थ्री इडियट’ फिल्म में इस बारे में कोई आपत्ति क्यों नहीं उठाई?
यूं तो बॉलीवुड ने कॉमेडी के नाम पर कई घटिया फिल्में परोसी हैं समाज में जिसमें लड़कों ने लड़कियों के कपड़े पहनकर हास्य के नाम पर भद्दा मजाक किया। कई बार जरा-सी तकलीफ पर लंबी-लंबी सांसें भरकर खुद से बलात्कार होना बताया। ये सब कैसे हास्यास्पद हो सकता है? सोचकर कोफ्त होती है। इस दौरान कुछ जुमले भी चल पड़े- 'तुम करो तो प्यार, हम करें तो बलात्कार।'
भगवान न करे किसी दुश्मन को भी बलात्कार जैसी हैवानियत से गुजरना पड़े। बहुत संवेदनशील है ये मुद्दा। आज जब सलमान खान ने फिल्म ‘सुल्तान’ के प्रमोशन के दौरान 'रेप विक्टिम' जैसा महसूस होने का बयान दिया तो बवाल मच रहा है। ऐसे असंवेदनशील बयान पर बवाल मचना भी चाहिए। उनके पिता सलीम हमेशा की तरह अपने बेटे की नादानी पर माफी मांग रहे हैं। भाई अरबाज कहते हैं कि गलती हो गई लेकिन क्या हम ये मानें कि अब दोबारा ऐसे बयान कोई एक्टर नहीं देगा? क्या ये समझें कि हमारी जिंदगी की कहानियां कहती फिल्मों के डायरेक्टर और संवाद लिखने वाले इस बात का ध्यान रखेंगे कि वो किस स्तर को छू रहे हैं?
हफ्तेभर पहले बलात्कार की शिकार एक आदिवासी लड़की छत्तीसगढ़ के बस्तर में मार दी गई। सुरक्षाबलों ने कहा वो नक्सली थी, मुठभेड़ में मारी गई। लेकिन घर वाले कहते हैं कि सुरक्षाबलों ने ही बलात्कार कर मार डाला। परिजन अब इंसाफ के लिए भटक रहे हैं, उनकी मदद को आगे आई सोनी सोढ़ी को बस्तर में घुसने नहीं दिया जा रहा। उस लड़की के परिजनों ने पूछा बलात्कार का मतलब?
सलमान खान फिल्म ‘सुल्तान’ में मेहनत कर थक गए, बॉक्स ऑफिस उसका भुगतान करोड़ों में करेगा। लेकिन बलात्कार की शिकार कितनी औरतें हैं, जो जी कैसे रही हैं, ये तक कोई जानना नहीं चाहता। क्या 'बीइंग ह्यूमन' ने कभी इन औरतों की सुध ली?
यहां नाराजगी केवल सलमान खान के बयान पर नहीं बल्कि अफसोस उस सोच पर है, जो हर संवेदनशील मुद्दे को या तो हल्का बताकर दरकिनार कर देता है या फेमनिज्म बताकर उपहास उड़ाता है।
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